मां के शक्ति रूप की पूजा देश के कई हिस्सों में की जाती है और उनके कई मंदिर प्राचीन शक्तिपीठ के रूप में देशभर में मौजूद हैं. देवी का ऐसा ही एक सुविख्यात मन्दिर राजस्थान में बाँसवाड़ा से लगभग 19 की.मी.की दूरी पर स्थित है। त्रिपुरा सुंदरी नाम का यह मन्दिर एक सिद्ध तांत्रिक शक्तिपीठ है, जिसकी जनता में बहुत मान्यता है । देश के कोने-कोने से श्रद्धालु देवी की आराधना करने यहां आतें है और अपना मनोवांछित फल प्राप्त करके जातें है।
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मंदिर में काले पत्थर पर खुदी हुई देवी की एक तेजोमयी मूर्ति, मंदिर में प्रतिष्ठित है. लोककथाओं के अनुसार ये मंदिर सदीयों पहले बनाया गया था. यह मंदिर एक 'शक्ति पीठ' के रूप में प्रसिद्ध है और देवी के शक्ति रूप की आराधना करने वालों के लिए ये मंदिर एक बड़ा तीर्थ है। अत्यंत रमणीय स्थान पर बना ये मंदिर श्रद्धालुओं को माता के आशीर्वाद के साथ मानसिक शांति भी प्रदान करता है। नवरात्रि में यहां लाखो लौग पहुँचते है इसलिए मंदिर के ठीक सामने ही पुलिस सहायता केंद्र भी बनाया गया है। Please subscribe our channel.
मंदिर का जीर्णोद्धार तीसरी शती के आस-पास पांचाल जाति के चांदा भाई लुहार ने करवाया था। मंदिर के समीप ही भागी (फटी) खदान है, जहां किसी समय लोहे की खदान हुआ करती थी। किंवदांती के अनुसार एक दिन त्रिपुरा सुंदरी भिखारिन के रूप में खदान के द्वार पर पहुंची, किन्तु पांचालों ने उस तरफ ध्यान नहीं दिया। देवी ने क्रोधवश खदान ध्वस्त कर दी, जिससे कई लोग काल के ग्रास बने। देवी मां को प्रसन्न करने के लिए पांचालों ने यहां मां का मंदिर तथा तालाब बनवाया। इस मंदिर का 16 वीं शती में जीर्णोद्धार कराया। आज भी त्रिपुरा सुन्दरी मंदिर की देखभाल पांचाल समाज ही करता है। यहां अनेक मंदिरों के ध्वसांवशेष मिले है।
सन् 1982 में खुदाई के दौरान यहां शिव पार्वती की मूर्ति निकली थी, जिसके दोनों तरफ रिद्धि-सिद्धि सहित गणेश व कार्तिकेय भी हैं। प्रचलित पौराणिक कथानुसार दक्ष-यज्ञ तहस-नहस हो जाने के बाद शिवजी सती की मृत देह कंधे पर रख कर झमने लगे। तब भगवान विष्णु ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए योगमाया के सुदर्शन चक्र की सहयता से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर भूतल पर गिराना आरम्भ किया। उस समय जिन-जिन स्थानों पर सती के अंक गिरे, वे सभी स्थल शक्तिपीठ बन गए। ऐसे शक्तिपीठ 51 हैं और उन्हीं में से एक शक्तिपीठ है त्रिपुरा सुंदरी।
तीनों पुरियों में स्थित देवी त्रिपुरा के गर्भगृह में देवी की विविध आयुध से युक्त अठारह भुजाओं वाली श्यामवर्णी भव्य तेजयुक्त आकर्षक मूर्ति है। इसके प्रभामण्डल में नौ-दस छोटी मूर्तियां है जिन्हें दस महाविद्या अथवा नव दुर्गा कहा जाता है। मूर्ति के नीचे के भाग के संगमरमर के काले और चमकीले पत्थर पर श्री यंत्र उत्कीण है, जिसका अपना विशेष तांत्रिक महत्व हैं। मंदिर के पृष्ठ भाग में त्रिवेद, दक्षिण में काली तथा उत्तर में अष्ट भुजा सरस्वती मंदिर था, जिसके अवशेष आज भी विद्यमान है। यहां देवी के अनेक सिद्ध उपासकों व चमत्कारों की गाथाएं सुनने को मिलती हैं। वाग्वरांचल में शक्ति उपासना की चिर परम्परा रही है। साढ़े ग्यारह स्वयं भू-शिवलिंगों के कारण लघुकाशी कहलाने वाला यह वाग्वर प्रदेश शक्ति आराधना के कारण ब्राहाी, वैष्णवी और वाग्देवी नगरी के रूप में लब्ध प्रतिष्ठित है। जगतज्जननी त्रिपुरा सुन्दरी शक्तिपीठ के कारण यहां की लोक सत्ता प्राणवंत, ऊर्जावान और शक्ति सम्पन्न है।
मां भगवती त्रिपुर सुंदरी का सात दिनों में हर दिन के हिसाब से अलग-अलग श्रृंगार किया जाता है. सोमवार को सफेद रंग, मंगलवार को लाल रंग, बुधवार को हरा रंग, गुरुवार को पीला रंग, शुक्रवार को केसरिया, शनिवार को नीला रंग और रविवार को पंचरंगी श्रृंगार किया जाता है. ऐसा भी कहा जाता है कि देवी मां भक्तों को तीन रूपों, प्रात:काल में कुमारिका, मध्यान्ह में सुंदरी यौवना तथा संध्या में प्रौढ़ रूप में दर्शन देती है। कहा जाता है कि इस मंदिर के आस-पास पहले कभी तीन दुर्ग थे। शक्तिपुरी, शिवपुरी तथा विष्णुपुरी नामक इन तीन पुरियों के बीच मे स्थित होने के कारण देवी का नाम त्रिपुरा सुन्दरी पड़ा।Please subscribe our channel.
मां त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति पीठ अपने आप में अपनी एक अलग ही धार्मिक महत्व रखता है। कहा जाता है की मां सती के शरीर के 52 टुकडो में से मां का ह्रदय इस स्थल पर गिरा था । पुरे विश्व के शक्ति पीठों में यह भी एक शक्ति पीठ है। यहां मां की आंखों के तेज से भक्तों की हर मनोकामना पुरी हो जाती है।
माता के दर्शनों के लिये राजस्थान ही नहीं, गुजरात और मध्यप्रदेश के श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में माता के दर्शन करने आते हैं। रविवार और छुट्टी वाले दिन यहां हजारों श्रद्धालु पहुंचतें है। इस धाम में माता की प्रतिमा का सौन्दर्य, शृंगार और आभा इतनी आकर्षित करने वाली है कि दर्शनार्थी घंटों तक माँ को निहारते रहते हैं। यहां राजस्थान के बांसवाड़ा, डूंगरपुर के अलावा मध्यप्रदेश के रतलाम और गुजरात के दाहोद से भी सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। अगली बार आपका राजस्थान आना हो तो माता के इस सिद्ध धाम में आना न भूलिएगा। Please subscribe our channel.
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