हिन्दी साहित्य के महान कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
Dwarika Prasad Maheshwari जी की एक प्रेरक कविता-
उठो धरा के अमर सपूतों पुनः नया निर्माण करो।
utho dhara ke Amar saputo poem explanation
utho dhara amar saputo poem bhavarth
कवि ने इस कविता द्वारा यह संदेश दिया है कि
हे भारतमाता के अमर पुत्रों, गुलामी की रात बीत गई है और अब आजादी का सबेरा हुआ है। अब तुम अज्ञान और आलस्य की नींद से जागकर देश के नवनिर्माण में लग जाओ। तुम्हें देशवासियों के जीवन में फिर से नया उत्साह भरकर उनमें नये प्राणों का संचार करना है। तुम्हें ज्ञान के सैकड़ों दीपक जलाकर नये युग का आहवान करना है।
यह हिंदी कविता,एक देश भक्ति की कविता है, आजादी दिवस की कविता है, एक प्रेरक कविता है तथा भारत देश पर कविता है।
Poem on India, Motivational Poetry
yah 15 August par boli Jane vali damdaar shaayari v skool me boli Jane vali shayri hai.
#artsstream
प्रस्तुत है कविता:-उठो धरा के अमर सपूतों
उठो धरा के अमर सपूतों
पुनः नया निर्माण करो।
जन-जन के जीवन में फिर से
नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो।
नया प्रात है, नई बात है,
नई किरण है, ज्योति नई।
नई उमंगें, नई तरंगें,
नई आस है, साँस नई।
युग-युग के मुरझे सुमनों में,
नई-नई मुस्कान भरो।
उठो धरा के अमर सपूतों
पुनः नया निर्माण करो।
डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ
नए स्वरों में गाते हैं।
गुन-गुन-गुन-गुन करते भौंरे
मस्त हुए मँडराते हैं।
नवयुग की नूतन वीणा में
नया राग, नवगान भरो।
उठो धरा के अमर सपूतों
पुनः नया निर्माण करो।
कली-कली खिल रही इधर
वह फूल-फूल मुस्काया है।
धरती माँ की आज हो रही
नई सुनहरी काया है।
नूतन मंगलमय ध्वनियों से
गुंजित जग-उद्यान करो।
उठो धरा के अमर सपूतों
पुनः नया निर्माण करो।
सरस्वती का पावन मंदिर
यह संपत्ति तुम्हारी है।
तुम में से हर बालक इसका
रक्षक और पुजारी है।
शत-शत दीपक जला ज्ञान के
नवयुग का आह्वान करो।
उठो धरा के अमर सपूतों
पुनः नया निर्माण करो।
उठो धरा के अमर सपूतो,
पुनः नया निर्माण करो।
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यह भारत की आज़ादी की कविता है, स्वतंत्रता दिवस के लिये हिंदी कविता व गणतंत्र दिवस के अवसर पर भी यह हिंदी कविता अक्सर बोली जाती है। यह 15 अगस्त पर तथा 26 जनवरी पर बोली जाने मे कविता की लिस्ट में शामिल है। यह देशभक्ति से भरी हुई आजादी दिवस की कविता है ।
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