तन और मन है पास बहुत सोच सोच में क्यों डूबी है। हम बदले तो कहा बेबफा वो बदले तो मजबुरी है। गंगा के तट बैठ रेत पर बना बना के रेट गिराए। हमने उसको उसने हमको जाने क्या कयं सपन दिखाए। कल सपने में मांग भरी थी हाथ अभी तक सिंदूरी है। उपवन उपवन घुमा फिर भी मन की कली नही खिल पाई। जग को सुरभित कर दे हमको ऐसी गन्ध नही मिल पाई। अब भी मन मृग बना हुआ फिरे ढूंढता कस्तूरी है।
@SanjaySingh-er4qj
3 ай бұрын
You very nice। Sanjay Singh
@SanjaySingh-er4qj
3 ай бұрын
You meet your
@abhinavdixit773
3 ай бұрын
Sir aap aur kumar vishwas sir kabhi sath sath nhi dikhte hai Esa kyo hai
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