आश्वलायनगृह्यसूत्रम्|तृतीयोऽध्यायः|ASHVALAYANA GRUHYASUTRA 03|सुस्पष्ट उच्चारणसहित|JSD VEDVIDYALAYA BY@JAGATGURU SHREE DEVNATH VED VIDYALAYA, NAGPUR.
आश्वलायन गृह्यसूत्र
इस वैदिक ग्रंथ के रचयिता श्रीआश्वलायन ऋषि हैं। ऋग्वेद का यह गृह्यसूत्र ग्रंथो में प्राचीनतम माना जाता है । इसमें चार अध्याय हैं। इसके मुख्य प्रतिपाद्य-विषय निम्नलिखित हैं :
अध्याय १ : पाकयज्ञ, दैनिक होम, स्थालीपाक, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, अन्नप्राशन, मुंडन, उपनयन, ब्रह्मचर्यनियम, मधुपर्क ।
अध्याय २ : श्रवणाकर्म, अष्टका, वास्तुनिर्माण, गृह प्रवेश ।
अध्याय ३ : पंच महायज्ञ, ऋषितर्पण, उपाकर्म, समावर्तन ।
अध्याय ४ : दाहकर्म, श्राद्ध ।
इस ग्रंथ की मुख्यतः ४ टीकाएँ दिखाई देती हैं :
१. जयन्त-स्वामी कृत 'विमलोदय-
माला ।
२. देवस्वामी का भाष्य ।
३. नारायण कृत 'विवरण' टीका ।
४. प्रसिद्ध वैयाकरण हरदत्त-कृत 'अनाविला' टीका ।
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