एक दिन, एक हफ़्ते या एक महीने में आप कुल कितने कदम चलते हैं इसका ट्रैक रखने के लिए आज तमाम तरह के स्मार्ट फ़ोन और स्मार्ट वॉच मौजूद हैं. लेकिन आज से क़रीब डेढ़ सौ साल पहले एक आदमी ऐसा भी हुआ जिसने दुर्गम पठारों और कठिन दर्रों को पार करते हुए क़रीब दो हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा की. इस यात्रा में वो 25 लाख कदम चला और अपने एक-एक कदम का बेहद नपा-तुला हिसाब उसने बिना किसी स्मार्ट फ़ोन या स्मार्ट वॉच के दर्ज किया.
उसकी इस यात्रा के बाद ही दुनिया के सामने हिमालय के पार की अबूझ दुनिया की गुत्थी सुलझी. विश्व मानचित्र पर पहली बास ल्हासा का सटीक नक़्शा बन सका और पहली बार दुनिया ने जाना कि ब्रह्मपुत्र और त्संगपो असल में एक ही नदी है.
उसकी यात्राएं इब्न बतूता, ह्वेन त्सांग, फ्रांसिस बर्नियर या मार्कोपोला की यात्राओं से किसी भी तरह कमतर नहीं रही और यही कारण है कि ब्रिटिश रॉयल जियोग्राफिकल सोसायटी के इतिहास का पहला सर्वोच्च सम्मान उसे मिला, पेरिस जियोग्राफिकल सोसायटी का सर्वोच्च पदक उसके नाम हुआ, सर्वे ऑफ़ इंडिया का gold medal उसने जीता और चीफ पंडित, ओरिजिनल पंडित और पंडितों का पंडित जैसे उपनामों से वो नवाज़ा गया.
पूरे एशिया की पीठ को अपने पैरों से नाप डालने वाले इस व्यक्ति का नाम था, पंडित नैन सिंह रावत.
Source: 'एशिया की पीठ पर: पंडित नैन सिंह रावत.' लेखक: उमा भट्ट, शेखर पाठक.
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