उत्तरकाशी का सांस्कृतिक गांव-रैथल
रैथल गांव उत्तरकाशी जिले के भटवाड़ी ब्लाक में स्थित है।समुद्र तल से 6 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित इस गांव से दयारा बुग्याल के लिए ट्रैक शुरु होता है।मखमली घास के मैदान की तलहटी में स्थित रैथल गांव कई माईनों में खास है।आज भी इस गांव लोकसंस्कृति और परम्पराओं की झलक मिलती है।विश्व प्रसिद्व दयारा बुग्याल पर हर साल एक खास त्यौहार मनाया जाता है जिसे बटर फेस्टिवल कहा जाता है और स्थानीय भाषा में अंडुडी पर्व कहा जाता है।यहां महिलाएं त्यौहार के समय प्रसिद्व रासों नृत्य में आपको दिखाई देंगी।पारम्परिक परिधान और आभूषणों में जब महिलाएं रासों नृत्य करती है तो लोकसंस्कृति का मनमोहक नजारा दिखता है।
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उत्तराखंड का होमस्टे गांव
रैथल उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 42 किमी की दूरी पर स्थित है।उत्तरकाशी से भटवाडी करीब 32 किमी और फिर भडवाडी से रैथल 10 किमी की दूरी पर स्थित है।इस गांव में दयारा बुग्याल में ट्रैकिग 1980 के दौर से शुरु हो गई थी।गांव के स्व चन्दन सिंह राणा ने दयारा बुग्याल को विश्व के मानचित्र पर लाने के लिए अथक प्रयास किए।उन्हें के प्रयासों से दयारा में हर साल बटर फेस्टिवल का आयोजन किया जाने लगा जिसमें स्थानीय लोग दूध,दही,मक्खन की होली खेलते है और दयारा बुग्लाय की पूजा अर्चना करते है।पहले इस गांव में रात्रि विश्राम के लिए केवल जीएमवीएन का गेस्ट हुआ करता था लेकिन आज इस गांव में 18 होमस्टे खुल चुके है।पारंपरिक पर्वतीय शैली में मिट्टी,पत्थर और लकडी के मकानों में देश विदेश के सैलानी होमस्टे का लुफ्त उठाते है।स्थानीय व्यंजन और लोकसंस्कृति की झलक भी दिखाई देती है।
राणा गंभीरू का गांव- रैथल
रैथल गांव की पहचान यहां के पंचपुरा भवन से है।इस गांव का इतिहास भी इस भवन से जुडा है।स्थानीय लोग बताते है कि टिहरी जिले के घनसाली क्षेत्र से एक वीर भड़ राणा गंभीरू इस गांव में आया तो उसने देखा कि बाघ और बकरी रैथल गांव में लड रही है।राणा गंभीरू इस दैवीय शक्ति को पहचान गया और रैथल में मंदिर की स्थापना कर अपने लिए एक आलीशाल पंचपुरा भवन का निर्माण किया जो आज भी गांव में विराजमान है और कोटी बनाल शैली में निर्मित है।इस तरह के भवन थाती गांव,कोटि बनाल गांव,दोणी,भितरी सहित कई गांवों में आज भी उत्तरकाशी के स्थापत्य कला का बेजोड नमूना है।इस जगह पर राणा गंभीरू बकरियों को चराने के लिए पहुचा था।वो एक वीर भड़ था और उसने पूरा टकनौर पट्टी पर प्रभाव हो गया।उसकी दो पत्नियां थी एक पत्नी ने उन्हीं के साथ सती हो गो गई।कहा जाता है कि राणा गंभीरू की वीरता को देखकर अछरियों ने उसे हर लिया था।
खतरे की जद में रैथल गांव
भटवाडी ब्लाक में स्थित इस गांव पर कुदरत का कहर कभी भी टूट सकता है।दरअसल रैथल गांव के भीतर भूगर्भीय हलचल तेजी से हो रही है।भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील यह गांव हर साल खिसक रहा है।वाडिया हिमालयन भू विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक लगातार इस गांव का अध्ययन कर रहे है।भारतीय और यूरेशियाई प्लेट के टकराव के लिए हिमालय हर साल उत्तर की तरफ खिसक रहा है लेकिन रैथल गांव पूरब की तरफ खिसक रहा है जिससे इस गांव के नीचे से लगातार भूस्खलन होता जा रहा है।जिस तेजी से गांव पूरब दिशा में खिसक रहा है वो दिन दूर नही जब पूरा गांव भागीरथी नदी में समा जाएगा।2011 में भटवाडी कस्बा में बडा भूस्खलन के बाद दर्जनों दूकाने नदी में समा गई थी।इस पूरे इलाके में करीब 10 किमी सडक भी धंस रही है।ग्रामीण बताते है 1991 के भूकंप के बाद दयारा बुग्याल से लेकर भागीरथी नदी तक जमीन के अन्दर कई हलचल हो रही है।गांव के कई पानी के स्रोत जमीन के अन्दर समा चुके है।इस पूरे इलाके में पहाड के भीतर पानी की मात्रा भी अधिक है।रैथल गांव के ऊपर घना जंगल है।पूरा गांव एक विशालकाय शिला के ऊपर बसा है।गांव के भीतर ही भीतर पानी का रिसाव हो रहा है साथ ही जमीन के भीतर चूहों की मात्रा भी काफी अधिक है और गांव के मकान भी धंस रहे है।
रैथल गांव है जैविक खेती के लिए प्रसिद्व
रैथल गांव अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के साथ साथ जैविक खेती के लिए प्रसिद्व है।भागीरथी घाटी में सबसे ज्यादा खेती इसी गांव में होती है।यहां आलू,मटर जैसे कैस क्राप भी उगाई जाती है तो धान,मंडुवा,चौलाई,झिंगोरा और राजमा जैसी पारम्परिक फलसों का भी उत्पादन होता है।द्रोपदी का डांडा,श्रीकंठ,जोगिन रेंज जैसी पर्वत श्रृंखलाओं इस गांव से साफ दिखाई देती है।अब काश्तकार सेब के बगीचे भी लगा रहे है।इस गांव में काश्तकारों को जैविक खेती का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
संपर्क सूत्र:मनोज राणा-9917264462
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