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अमरावती का प्रसिद्ध मंगला माता मंदिर , जानिए क्या है इतिहास ?
डिजिटल डेस्क,अमरावती। जिले के धामणगांव रेलवे तहसील का मंगरुल दस्तगीर गांव बारामुंडा के रूप में प्रसिद्ध है। इस गांव में 300 साल पुराना श्रीराम मंदिर व 150 साल पुराना दत्त व गणपति मंदिर है। सारे मंदिर अत्यंत सुंदर और भव्य वास्तुशिल्प का अदभुत नमूना है। इस गांव के पश्चिमी छोर पर 1 किमी दूरी पर स्थित पूर्वाभिमुख श्री भगवती मंगला माता का पुरातन एवं जागृत देवस्थान है।
ग्रामीणों के मुताबिक करीब 200 साल पहले कोई भक्त नवरात्र में माहुर की रेणुका माता की दर्शन के लिए जा रहा था। बुजुर्ग होने के कारण उसका आगे चल पाना संभव नहीं था, वह बेहद दुखी हो गया। रेणुका माता ने उससे कहा कि चिंता मत कर मैं स्वयं तेरे गांव आ रही हूं। बाद में कोई सतपुरुष इस मार्ग से जा रहा था। उसकी नित्य पूजा का रेणुका माता का मुखौटा मंगलधाम परिसर में रह गया। जब वह अगले गांव पहुंचा तो उसे रेणुका माता का मुखौटा न होने की बात ध्यान में आई। वह फिर से मंगलधाम परिसर गया, तब रेणुका मां ने कहा कि वे अब यहीं रहेंगी। तब ही से चैत्र शुक्ल 14 का हर वर्ष कुलाचार उत्सव होता है। यह मंगला माता को भवानी भी कहा जाता है। यह स्थान माहुर क्षेत्र का ‘उमरावती पीठ' होने के कारण माहुर की रेणुका माई से मन्नत का नारियल फोड़ा जाता है।
अनेक घरानों की कुलदेवी
मंगरुल दस्तगीर की मंगला माता अनेक घरानों की कुलदेवी है। बीच के कुछ काल तक यह स्थल उपेक्षित था। इ.स. 1942 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे संघ संचालक गोलवलकर गुरुजी मंगरुल की संघ शाखा देखने के लिए दौरे पर आए थे। गुरुजी की अध्यात्मिक क्षेत्र में रूचि होने के कारण वे मंगलधाम दर्शन करने के लिए गए, वहां भगवती का रूप देखते ही गुरुजी ने यह स्थान जागृत होने की बात कहीं। आगे नागपुर के पूर्वाश्रम के खेड़कर यानी स्वामी शीलानंद सरस्वती सन्यास लेने के बाद साधना करने के लिए मंगरूल आए थे। मंगलादेवी का पवित्र परिसर देखकर स्वामीजी को आनंद हुआ। उनकी धारणा थी कि भक्तों की भक्ति और पूजा से मूर्ति में देवत्व आता है। इसलिए भगवती मंगल माता की पूजा अर्चना व्यवस्थित हो तथा स्थान की उन्नति हो इसलिए उन्होंने विशेष प्रयास किए।
उपशक्तिपीठ की घोषणा
इ.स. 1989 में क्षेत्र सोवई जिला नगर के योगीराज अन्ना महाराज श्री क्षेत्र माहुर की यात्रा पर जा रहे थे। बाबूराव देशपांडे के आग्रह पर वे मंगरूल रुके। इस समय उन्होंने कहा कि यह सिध्द स्थान है। माहुर की रेणुका माता का उपशक्तिपीठ है। श्री लक्ष्मी, श्री सरस्वती, श्री राधा, श्री दुर्गा देवी, श्री सावित्री इस पंचशक्ति से सजी हुई देवी यानी मंगलामाता है, यह ब्रह्मांड निर्माण करने की उनकी इच्छा हुई। उस समय उनके बाए अंग से पुरुष व दाहिने अंग से प्रकृति का निर्माण हुआ। प्रकृति सत्व रज तंम इन गुणों से युक्त है। प्रकृति के मुख्य पांच अंग हैं, लक्ष्मी, सरस्वती, राधा, दुर्गा, सावित्री प्रकृति के छठवें अंश स्कंद माता षष्ठी देवी निर्माण हुई।#sallubilsi
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