Part- 03 । 99% हिन्दी नहीं जानते हैं , रामायण के यह रहस्य । रामायण के चौंकाने वाले रहस्य । Ramayana
11.वनवास काल में भगवान राम कहां कहां पर रहे थे। चित्रकूट से निकलकर श्रीरान घने वन में पहुंच गये । उस काल में इसे दंडकारण्य कहा जाता था। इस वन में उन्होंने अपने जीवन के लगभग 12 वर्ष से अधिक का समय विताया था। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओड़िसा और आंध्रप्रदेश के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर दंडकाराण्य कहा जाता था। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के अधिकतर हिस्से शामिल हैं। दरअसल उड़ीसा की महानदी के इस पार से गोदावरी तक दंडकारण्य का क्षेत्र फैला हुआ था। इसी दंडकारण्य का ही हिस्सा है आध्रप्रदेश का एक शहर भद्रायलम। गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भद्रगिरि पर्यंत पर है। कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन भद्रगिरि पर्वत पर ही बिताए थे। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ आ गिरे थे। ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है। यह क्षेत्र भारत के सबसे घने जंगलों का क्षेत्र था परंतु अब सुंदरवन के क्षेत्र ही धने बच्चे है। रामायण के अनुसार उस काल में यह वन विध्याचल से कृष्णा नदी के कांठे तक विस्तृत था। इसकी पश्चिमी सीमा पर विदर्भ और पूर्वी सीमा पर कॉलिंग की स्थिति थी। यह पूर्वी मध्य भारत का क्षेत्र है जो लगभग 92,300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ था जिसमें पश्चिम में अबूझमाड पहाडियां तथा पूर्व में इसकी सीमा पर पूर्वी घाट शामिल है। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक लगभग 320 किलोमीटर तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग 480 किलोनीटर का माना जाता है। क्षेत्र का कुछ भाग रेतीला समतलीय है और जिसकी ढलान उत्तर से दक्षिण-पश्चिम की तरफ है जिसमें वनों से लदे पठार और पहाडिया हैं, जो पूर्व दिशा से अचानक उभरतीं हैं तथा पश्चिम की और धीरे-धीरे इनकी ऊंचाई कम होती चली जाती है। यहां कई मैदानी क्षेत्र भी है। इस क्षेत्र की मुख्य नदी महानदी और गोदावरी है। महानदी की सहायक नदियां तेल जॉक, उदेति, हट्टी, एवं सांदुल हैं जबकि गोदावरी की सहायक नदियों में इंदावती और साबरी प्रमुख है। इस वन में कई बड़ी और छोटी पहाड़ियां थीं और सैकड़ों नदियां उसमें में बहती थी। रामायण के अनुसार इस जंगल में बहुतायत में राक्षस, असुर और खतरनाक जंगली पशु निवास करते थे। विध्यं पर्वत पर या आने जाने के लिए या चित्रकूट की ओर जाने के लिए कई लोगों और ऋषि मुनियों को यह खतरनाक जंगल पार करना होता था। इस दौरान उनका सामना जंगली पशुओं के साथ ही खतरनाक राक्षसों से भी होता था। इस वन में उन्होंने देश के सभी संतों के आश्रमों को बर्बर लोगों के आतंक से बचाया। अत्रि को राक्षसों से मुक्ति दिलाने के बाद प्रभु श्रीराम दंडकारण्य क्षेत्र में चले गए, जहां आदिवासियों की बहुलता थी। यहां के आदिवासियों को बाणासुर के अत्याचार से मुक्त कराने के बाद प्रभु श्रीराम 10 वर्षों तक आदिवासियों के बीच ही रहे। वन में रहकर उन्होंने वनवासी और आदिवासियों को धनुष एवं बाण बनाना सिखाया, तन पर कपड़े पहनना सिखाया, गुफाओं का उपयोग रहने के लिए कैसे करें, ये बताया और धर्म के मार्ग पर चलकर अपने रीति रिवाज कैसे संपन्न करें यह भी बताया। उन्होंने आदिवासियों के बीच परिवार की धारणा का भी विकास किया और एक-दूसरे का सम्मान करना भी सिखाया। उन्हीं के कारण हमारे देश में आदिवासियों के कबीले नहीं, समुदाय होते हैं। उन्हीं के कारण ही देशभर के आदिवासियों के रीति रिवाजों में समानता पाई जाती है। भगवान श्रीराम ने ही सर्वप्रथम भारत की सभी जातियों और संप्रदायों को एक सूत्र में बांधने का कार्य अपने वनवास के दौरान किया था। एक भारत का निर्माण कर उन्होंने सभी भारतीयों के साथ मिलकर अखंड भारत की स्थापना की थी। भारतीय राज्य तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, केरल, कर्नाटक सहित नेपाल, लागोस, कंपूचिया मलेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भुटान, श्रीलंका, बाली, जावा, समात्रा और धाईलैंड आदि देशों की लोक-संस्कृति ग्रंथों में आज भी राम इसीलिए जिंदा हैं ।
12. रावण ने कैलाश पर्वत उठा दिया था तो शिव का धनुष क्यों नहीं उठा पाया ? अक्सर लोगों के मन में यह सवाल आता है कि जब रावण कैलाश पर्वत उठा सकता है तो शिव का धनुष कैसे नहीं उठा पाया और भगवान राम ने कैसे उस धनुष को उठाकर तोड़ दिया? आओ इस सवाल का जवाब जानते हैं। भगवान शिव का धनुष बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारिक था।
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