छत्तीसगढ़ की संस्कृति में बस्तर संस्कृति विशेष में अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाती है उनकी रहन-सहन खान अन्य देशों समझो से काफी अलग
ऐसे कई प्रकार की रीति रिवाज है जिसे देख जान आप क्यों कहेंगे जो आज सिर्फ और सिर्फ बस्तर के आदिवासी समुदायों में देखने को मिलती है वैसे तो बस्तर में सा जिला आता है और सातों जिला में कई प्रकार की जनजाति निवास करते हैं और हर एक जनजाति की अलग-अलग विशेषता परंपरा रीति रिवाज है जिसे वह पहचाने जाते हैं साथ ही साथ यहां की बोली भाषा भी अलग है कई शुभ सुविधा योजना से वंचित होने के बावजूद भी इनका जीवन बहुत ही सुखद माना जाता है
बस्तर को पढ़कर जितना जानना आसान माना जाता है उतना है नहीं अगर आप जब तक उनकी रीति रिवाज संस्कृति से रूबरू नहीं होंगे जब तक मिलेंगे नहीं तब तक शायद आप इसे वंचित रह जाएंगे और जिस दिन आप उनसे मुलाकात करेंगे इनके भाव भाव व्यवहार बोली भाषा वेशभूषा संस्कृति से मुलाकात करेंगे लेकिन मानीय आप यही के हो जाएंगे
लगातार हम बस्तर की संस्कृति में कई प्रकार की सुंदरता और समस्याओं को लेकर आते रहते हैं इसी कड़ी में हम आज आपको बस्तर संस्कृति कलर से जुड़ी देव मिला दो वर्ष में एक बार अपने-अपने स्थानीय क्षेत्र में देखने को मिलता है विशेष कर यह वीडियो कोंडागांव जिले का है जिसमें आसपास के गांव वाली अपने आराध्य देवी देवताओं को एक जगह पर लेकर आते हैं माना जाता है कि इस दिन जब देव का आगमन उसे पुरुष पर होता है तो उनकी झलकपुर अलग ही देखने को मिलती है जिनकी स्वागत के लिए स्थानीय लोग सफेद के पुष्प माला लेकर उनको पहनते हैं आशीर्वाद लेते हैं मंगलमय और सुखद स्वस्थ जीवन की कामना करते हुए यह परंपरा को लगातार कई वर्षों से निभा रहे हैं
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Негізгі бет |बस्तर मे ही जिंदा है परंपरा DEV MELA || BASTAR CHHATTISGARH
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