#koham3469
प्रशांतात्मा यानि शांत अंत:करण वाले साधको भय रहित होना भी जरूरी है। अध्यात्म के मार्ग पर चलनेवाले साधक के मन में किसी भी प्रकार का भय होना एक रुकावट ही है।
भयरहित होने के लिय ब्रह्चर्य का पालन आवश्यक है। ब्रह्मचर्य, जिसे साधारणत: वीर्यरक्षा ऐसा ही माना जाता है। लेकिन इससे बढकर और भी कई आयाम हैं जिन की विशद चर्चा भी हुयी है। ब्रह्मचर्याश्रममें साधक को सिर्फ तीन रिश्ते ही निभाने होते है। १.परमात्मा, २.गुरु और ३.शास्त्र
ब्रह्मचर्याश्रमसे गृहस्थाश्रम में प्रवेश। गृहस्थ यानि जो गृह में निवास करता है। इसका एक और अर्थ भी हो सकता है, जिसमें गृह स्थित है। यानि पूरा घर मनमें उठाये फिरते है! यह ध्यान की क्रियामें बाधारूप होता है।
जय श्रीकृष्ण।🙏
Негізгі бет BGS0614b शांत अंत:करण और निर्भयता के बाद ब्रह्मचर्य का महत्व। ब्रह्मचर्य सिर्फ वीर्यरक्षा ही नहीं।
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