जय गुरुदेव
मन का अगला आयाम चित्त कहलाता है। चित्त का मतलब हुआ विशुद्ध प्रज्ञा व चेतना, जो स्मृतियों से पूरी तरह से बेदाग हो। यहां कोई स्मृति नहीं होती है। हर तरह की बातें कही गई हैं - ‘ईश्वर बड़ा दयालु है, ईश्वर प्रेम है, ईश्वर यह है, ईश्वर वह है।’ मान लीजिए कि किसी ने भी ये सारी बातें आपसे न कहीं होतीं और आप बिना कुछ सुने या माने बस अपने आसपास की सृष्टि को ध्यान से देखते कि कैसे एक फूल खिलता है, कैसे एक पत्ती निकलती है, कैसे एक चींटी चलती है। अगर आप इन सारी चीजें पर पूरा ध्यान देते तो इस नतीजे पर आपका पहुंचना तो तय था कि इस सृष्टि का स्रोत जो भी है, उसमें अद्भुत इन्टेलिजेन्स है, वह प्रज्ञावान है। सृष्टि की हर चीज में एक जबरदस्त इन्टेलिजेन्स है, जो हमारे काफी तेज़ दिमाग से बहुत परे है।
चित्त मन का सबसे भीतरी आयाम है, जिसका संबंध उस चीज से है जिसे हम चेतना कहते हैं। अगर आपका मन सचेतन हो गया, अगर आपने चित्त पर एक खास स्तर का सचेतन नियंत्रण पा लिया, तो आपकी पहुंच अपनी चेतना तक हो जाएगी
हम लोग जिसे चेतना कह रहे हैं, वो वह आयाम है, जो न तो भौतिक है और न ही विद्युतीय और न ही यह विद्युत चुंबकीय है। यह भौतिक आयाम से अभौतिक आयाम की ओर एक बहुत बड़ा परिवर्तन है। यह अभौतिक ही है, जिसकी गोद में भौतिक घटित हो रहा है। भौतिक तो एक छोटी सी घटना है। इस पूरे ब्रह्माण्ड का मुश्किल से दो प्रतिशत या शायद एक प्रतिशत हिस्सा ही भौतिक है, बाकी सब अभौतिक ही है।
योगिक शब्दावली में इस अभौतिक को हम एक खास तरह की ध्वनि से जोड़ते हैं। हालांकि आज के दौर में यह समझ बहुत बुरी तरह से विकृत हो चुकी है, इस ध्वनि को हम ‘शि-व’ कहते हैं। शिव का मतलब है, ‘जो है नहीं’। जब हम शिव कहते हैं तो हमारा आशय पर्वत पर बैठे किसी इंसान से नहीं होता। हम लोग एक ऐसे आयाम की बात कर रहे होते हैं, जो है नहीं, लेकिन इसी ‘नहीं होने’ के अभौतिक आयाम की गोद में ही हरेक चीज घटित हो रही है।
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