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🌹आज के सत्संग के माध्यम से आदरणीय नितिन जी ने अध्याय तेरह में प्रवेश किया है,जहाँ अर्जुन ने प्रभु से सर्वोच्च भक्ति और सर्वोच्च भक्त के विषय में जानने के बाद फिर से प्रभु से प्रश्न किया है।
🌹अर्जुन कहते हैं कि हे प्रभु!हे केशव!अब आप मुझे प्रकृति-पुरूष, क्षेत्र एवं क्षेत्रज्ञ की परिभाषा और सच्चा-शाश्वत ज्ञान क्या है और इस ज्ञान का आख़िर लक्ष्य क्या है?ये सब बताएं🙇♀️
🌹अब प्रभु ने अर्जुन को उत्तर देते हुए बताया कि हे कौन्तेय!यह भौतिक शरीर, देह जिसके माध्यम से मनुष्य कर्मों की खेती करता है क्षेत्र कहलाता है और इस क्षेत्र को जानने वाला,यहाँ कर्म करवाने वाला आत्मा जो इस स्थूल शरीर का थोड़ा-बहुत(सीमित)ज्ञान रखता है,क्षेत्रज्ञ कहलाता है।
🌹अब प्रभु और भी स्पष्ट, गूढ़तम बात करते हुए कहते हैं कि हे भरतवंशीअर्जुन!समस्त शरीरों में स्थित मैं भी क्षेत्रज्ञ हूँ,क्योंकि मैं तो सबके स्थूल व सूक्ष्म शरीरों के बारे में असीमित जानकारी रखता हूँ और क्षेत्र तथा क्षेत्रज्ञ (आत्मा-परमात्मा)को जानना यानि शरीर,आत्मा-परमात्मा की कार्यप्रणाली को समझना ही शाश्वत-सच्चा ज्ञान है,यही मेरा मत है।
🌹अब प्रभु अर्जुन को और अधिक स्पष्टता से सब कहते हैं कि वह क्षेत्र क्या है,कैसा है,कैसे परिवर्तनशील है,कहाँ से उत्पन्न होता है,उसका ज्ञाता कौन है और उसका प्रभाव क्या है?मैं सब तुमसे संक्षिप्त में कहूंगा।
🌹प्रभु कहते हैं कि यह क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का ज्ञान इतना पुरातन है कि इसका तत्वावधान तो प्रबुद्ध ऋषि-मुनियों ने भी बहुत प्रकार से किया है और हमारे वेद मंत्रों में भी इसका वर्णन अलग-अलग रूपों में इंगित है,बेशक सबका बताने का ढंग अलग-अलग हो सकता है,लेकिन तीनों की कार्यप्रणाली को समझना बेहद ज़रूरी है।वेदव्यास जी द्वारा रचित ब्रह्मसूत्र(वेदांतदर्शन) में भी इस गूढ़तम ज्ञान का गायन समाहित है और यही निर्देश है कि इन तीनों को गहराई से जानो।
🌹अब प्रभु क्षेत्र को परिभाषित करते हैं कि यह क्षेत्र पंच महाभूत(पृथ्वी,जल,वायु,अग्नि, आकाश),अहंकार, बुद्धि, मूल प्रकृति(अव्यक्त तीन गुण-तमस,रजस,सत्व),दस इंद्रियाँ(पांच ज्ञानेंद्रियां-चमड़ी,आंखें,कान,नाक,मुख और पांच कर्मेन्द्रियां-गुदा,गुप्तांग,आवाज,हाथ,पैर), एक मन,पांच इंद्रियों के विषय(शब्द, रूप,रस,गंध, स्पर्श)से निर्मित है।
🌹आगे क्षेत्र की संरचना में प्रभु कहते हैं कि इच्छा, द्वेष, सुख-दुःख, स्थूल शरीर,चेतना और धैर्य इत्यादि विकारों का तत्वसमूह भी क्षेत्र के ही अंतर्गत आता है।
हरि-हरि बोल जी
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गोलोक एक्सप्रेस (आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए एक ऑनलाइन मंच) के सुबह के सत्संग में
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