Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj's Discourse in Hindi
स्वामी श्रीशरणानन्दजी महाराज जी का प्रवचन।
प्रेमियों ने कभी नहीं सोचा कि प्यारे कैसे हैं और मेरे साथ क्या करेंगे! क्यों? वे मानते हैं कि प्रभु उनके हैं-और वे जानते हैं कि ‘वे’ जो करेंगे, वही मजे की बात होगी।
सर्वस्व समर्पण में सभी शंकायें डूब जाती हैं।
परमात्मा में आत्मीय सम्बन्ध की स्वीकृति साधक स्वयं अपने द्वारा करता है। आँख बंद करने, कान बंद करने, स्वांस रोकने, आसन लगाने अथवा मुद्रा साधने की आवश्यकता ही नहीं।
जिसे लोग जड़-जगत् कहते हैं, यह प्रभु की ओर आकर्षित करने की उनकी लीला है। संसार बेचारा भगवान् को याद दिलाने के लिए आपकी पकड़ में ही नहीं आया!
इस तरह यह सारी सृष्टि हमें निरन्तर प्रभु से मिलाना चाहती है। लेकिन हम प्रभु से विमुख होकर सृष्टि को प्रभु से विमुख करते हैं।
परमात्मा इतने महान् हैं, ऐसे परम सुहृद हैं कि यदि आप उन्हें पसन्द कर लेंगे, तो वे अवश्य आपको अपनालेंगे।
Негізгі бет होनेवाला चिंतन करने वाला चिंतन से मिटेगा यह भ्रम है। 29(ब) - Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj
Пікірлер: 18