हरनंदी भात #dada Debi datt #कविता #kaviyon ki baat #Kavi sammelan #Haryanvi Kavita #Debi dattkiragni
फेर खाणे नै भोजन ले के पोंहचंगे नन्दलाल
समदर्शी के चरण फिरे मन्दिर का बदलग्या हाल
धन-माया के ढेर पड़े जड़ में घरे हीरे-लाल
बिना ज्ञान कूण परख सकै से पणमेसर की छवि भाई
बहोत दूर अस्थान बतावें जितने शशि रवि भाई
देवीदत्त कहे उन्हतें भी आगे पहोंचज्या सै कवि भाई
सुण्यकै उन महापुरुषों के ख्यालात नै,
तनै तै या वृथा एक जीभ बिलोई।
रुकमणि द्वारा तैयार किये गये भोजन को लेकर स्वयं श्रीकृष्ण
भगवान जूनागढ़ पहुँचते हैं और कुटिया में जाकर नाई से भोजन ग्रहण
करने का अनुरोध करते हैं। साथ-साथ देरी, यदि कुछ हुई है, तो उसके
लिए क्षमा-याचना भी करते हैं और क्या कहते हैं- .
जवाब श्रीकृष्ण भगवान का
टेक : चा में भरकै, तावल करकै, पहोंच गये कुटिया में भगवान ।
धन्य-धन्य धन्य म्हारै कद-कद आओ
और मांग लियो जो कुछ चाहो
भोजन बड़े प्रेम से पाओ, जो मालिक ने दिया अन्न-पान ।
सेठ म्हारा धन में सौ गरगापी
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