भूल सुधार : वीडियो में (3:10 - 3:25) पर प्रोडक्शन टीम द्वारा भूलवश पद्म भूषण से सम्मानित इतिहासकार नीलकंठ शास्त्री जी की तस्वीर इस्तेमाल हुई है, जबकि स्क्रिप्ट में किसी अन्य नीलकंठ शास्त्री का ज़िक्र है.
8 जुलाई 1947 का दिन था. यानी देश की आज़ादी से ठीक 38 दिन पहले. अंग्रेज़ी बैरिस्टर सिरिल रैड्क्लिफ़ इस दिन भारत पहुंचे. उन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई थी कि अगले पांच हफ़्तों में वो बंगाल और पंजाब को चीरती हुई एक ऐसी लकीर खींचें, जो इस देश के भूगोल, इसके समाज और इसके लोगों को हमेशा के लिए दो अलग-अलग देशों में बांट दे.
रैड्क्लिफ़ के नेतृत्व में ‘बाउंड्री कमिशन’ तेजी से विभाजन की प्रक्रिया में जुट गया और इसके साथ ही शुरू हुई दुनिया की सबसे त्रासद घटनाओं में दर्ज, बंटवारे की त्रासदी. करोड़ों लोगों की दुनिया हमेशा के लिए बदल रही थी. एक आज़ाद सुबह का सूर्योदय देखने से पहले इन लोगों को विभाजन की कई स्याह रातें गुज़ारनी पड़ी और अपना सब कुछ पीछे छोड़ एक अनिश्चित भविष्य की ओर पलायन करना पड़ा.
एक नए मुल्क में जा बसने के लिए जो लोग अपना-अपना सामान बांध रहे थे, उनमें 43 साल की एक महिला भी थी. कुमाऊँ के अल्मोड़ा में जन्मीं इस महिला के पूर्वज कुमाऊनी ब्राह्मण थे, माता-पिता ईसाई और पति मुस्लिम लीग के सबसे बड़े नेताओं में से एक. ये महिला जो अब पाकिस्तान की ‘फ़र्स्ट लेडी’ बनने जा रही थी और जिसे आगे चलकर ‘मादर-ए-पाकिस्तान’ का ख़िताब मिलने वाला था, वो थी कुमाऊँ की बेटी आइरीन पंत जो अब बेगम राणा लियाक़त अली खान हो चुकी थी.
'विरासत' के इस एपिसोड में देखिए कहानी कुमाउं की उस बेटी की जो बनीं पाकिस्तान की 'फर्स्ट लेडी'.
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