#GovindKiGali #VinodAgarwal #समर्पणभाव
भक्ति का पहला व अंतिम सोपान समर्पण ही है।
प्रेम समर्पण से ही तो पूर्ण होता है और जब प्रेमी समर्पण करता है तब वह भक्ति की पराकाष्ठा है, समर्पण राधा का रास ही नहीं मीरा की तपस्या भी है, समर्पण मिलन ही नहीं विछोह भी है।
ऐसा ही समर्पण भाव श्रद्धेय विनोद अग्रवाल जी की मधुर व सरस वाणी में
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