कोली एक समुदाय है जो मूल रूप से भारत के
गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र,
हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक
और जम्मू कश्मीर राज्यों का निवासी रहा है।
कोली गुजरात की एक जमीदार जाती है इनका
मुख्य कार्य खेतीबाड़ी है लेकिन जहां पर ये
समुंद्री इलाकों में रहते हैं वहां पर खेतीबाड़ी
काम करते हैं। बीसवीं शताब्दी की शुरुआत
में अंग्रेजी हुकूमत ने इनको खूनी जाती घोषित
कर दिया था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान
अंग्रेजी हुकूमत ने कोली जाती को एक योद्धा
जाती का दर्जा दिया क्योंकि कोली जाती ने
प्रथम विश्व युद्ध में अपने वीरता का परिचय
दिया।
पंद्रहवीं शताब्दी के लेखों के अनुसार कोली
जागीरदार खासकर गुजरात सल्तनत में
लूट पाट करते थे। लेखिका सुसान बेबी के
अनुसार कोली जाती महाराष्ट्र की एक
पुरानी क्षत्रिय जाती है। सन् 1940 तक
तो गुजरात और महाराष्ट्र के सभी राजा
और महाराजा कोली जाती को एक
बदमाश जाती के रूप में देखते आए थे
जिसके कारण वो अपनी सैन्य शक्ति
बनाए रखने के लिए कोली जाती को
सैनिकों के तौर पर रखते थे। बहुत
पुराने समय से ही कोली जाति अपना
महत्व बनाए हुए है। गुजरात में मुस्लिम
शासन के समय कोली जाती जागीरदार
के तौर पर और गीरासिया के तौर पर
बनी हुई थी। जागीरदार कोली अपने
आप को ठाकोर बोलते थे यानी की
जागीरदार।
जब गुजरात पर मुगलों का शासन
हुआ तो मुगलों के लिए पहली चुनौती
कोली जाती ही थी। गुजरात के कोली
मुगल शासन के खिलाफ थेे, और
हथियार उठा लिए थे। जिनमें से एक
यादगार लड़ाई 1615 की है; जो
कोली जागीरदार लाल कोली और
मुगल गवर्नर जनरल अब्दुल्ला खान
की है। लाल कोली ने मुगलों की नाक
में दम कर दिया था। इस लड़ाई में
अब्दुल्ला खान 3000 घुड़सवार और
12000 सिपाही लेकर कॊलियो के
खिलाफ लड़ाई में उतरा थाा; लेकिन
लाल कोली ने और कोली जमीदारों को
एक किया और सहि मुगल सेना से
भिड़ गया था, लेकिन एक खूनी
लड़ाई के बाद अब्दुल्ला खान की
जीत हुए थी और अहमदाबाद के
एक दरवाजे पर लाल कोली ठाकोर
का सिर लटका दिया था। लेकिन इस
घटना से गुजरात की कोली जाती का
निडर होना दिखाई पड़ता है। लेखिका
शुचित्रा सेठ के अनुसार जब औरंगज़ेब
ने गुजरात पर शासन किया था तब भी
कोली जाती ने ही हथियार उठाए थे।
औरंगज़ेब के राज में कोली जाती के
लोग मुस्लिम गांव में लूट पाट किया
करते थे और उनके जानवर और अन्य
जरूरी सामान को लूट ले जाते थे, और
खासकर शुक्रवार के दिन किया करते
थे लेकिन सुलतान औरंजेब कोली जाती
को संभालने में नाकामयाब रहा।
इसलिए सुलतान ने 1665 में एक
फरमान जारी किया की शुक्रवार के
दिन कोई भी हिन्दू और जैन पूरी रात
अपनी दुकानें खुली रखेंगे ताकि
कोली जाती के लोगो का ध्यान
उनको लूटने में जाए लेकिन ये
तरीका फैल हुआ। लेकिन इससे
यह पता चलता है कि कोली जाती
का उस समय क्या महत्व रहा होगा।
इससे पहले 1664 में भी कोली
जाती ने ऐसा ही किया था। कोली
जाती हमेशा से ही विद्रोही स्वभाव
की रही है।
1830 मे कोली जागीरदारों ने उत्तर
गुजरात में अंग्रेजी हुकूमत के
खिलाफ हथियार उठाए। कोली
जागीरदारों को ठाकोर साहेब के
नाम से जाना जाता था। अंब्लियारा
जागीर की कोली रानी ने अंग्रेज़ो से
कई सालों तक कड़ी टक्कर ली थी।
लेकिन कोली जागीरदारों के विद्रोह
को दबाने के लिए ग्वालियर रियासत
और बड़ौदा रियासत के महाराजाओं
ने अंग्रेजों का पूरा साथ दिया। लेकीन
1857 में फिर से कोली जाती के
लोगों ने कोली जागीरदारों के नेतृत्व
में फिर से हथियार उठा लिए थे।
आंग्रे महाराष्ट्र की कोली जाती का
गोत्र है। आंग्रे गोत्र के कोलियो ने
कोलाबा रियासत प्र राज किया था
और मराठा साम्राज्य में भी सेवा
की थी।
वनकपाल महाराष्ट्र के कोलियों का
गोत्र है।वनकपाल गोत्र खासकर
महादेव कोलियों में पाया जाता है।
वनकपाल कोली बहमनी सल्तनत
और अहमदनगर सल्तनत में सरदार
और मनसबदार थे।वनकपाल
कोलियों के सामाजिक और धार्मिक
मुखिया को सरनाईक की उपाधि दी
जाती थी और वो ही इनके मामलो की
देखभाल करता था।
चिवहे महाराष्ट्र के कोलियों का गोत्र है।
जो की खासकर ज़मीदार थे और मराठा
साम्राज्य में किलेदार थे जो नाइक और
सरनाईक की उपाधियों से सम्मानित थे।
चिवहे गोत्र के कोलियों ने छत्रपति
राजाराम राजे भोंसले के कहने पर
मुग़लों से पुरंदर किला छीन लिया था।
पुरंदर किले और सिंहगड किले पर
चिवहे कोलियों की ही सरदारी रही है।
ईसू चिवहे नाम के कोली को पुरंदर के
सरनाईक की उपाधि से नवाजा गया और
उसे 6030 बीघा जमीन भी दी गई थी।
1763 में पेशवा ने आभा पुरंदरे को
सरनाईक बना दिया था जिसके कारण
चिवहे कोलियों ने पेशवा के खिलाप विद्रोह
कर दिया और पुरंदर एवं सिंहगढ़ किले पर
कब्जा कर लिया था। कोलियों को आभा
पुरंदरे पसंद नही आया तो आभा ने कोलियों
को किलेदारी से हटा दिया और नए
किलेदार तैनात कर दिए थे जिसके कारण
कोलियों ने 7 मई 1764 में किलों पर
आक्रमण कर दिया और अपने कब्जे में ले
लिया। पांच दिन बाद रुद्रमल किले को भी
कब्जे में ले लिया और मराठा साम्राज्य के
प्रधान मंत्री पेशवा रघुनाथराव को चुनोती
पेश की। कुछ दिन बाद पेशवा पुरंदर किले
के अंदर देवता की पूजा करने के लिए
किले में आया लेकिन पेशवा कोलियों में
हथथे चढ़ गया। कोलियों ने पेशवा का
सारा सामान और हथियार लूट लिए
और उसको बन्दी बना लिया लेकिन कुछ
समय बाद छोड़ दिया। इसके बाद
कोलियों ने आस पास के छेत्र से कर
बसूलना सुरु कर दिया। इसके बाद
कोलियों के सरनाईक कोंडाजी चिवहे
ने पेशवा के पास पत्र भेजा जिसमे लिखा
हुआ था 'और जनाब क्या हाल चाल है
,सरकार कैसी चल रही है मज़े में हो'। यह
पत्र पढ़कर पेशवा कुछ ज्यादा ही अपमानित
महसूस करने लगा और बौखलाकर मराठा
सेना को आक्रमण का आदेश दे दिया
लेकिन सेना कुछ भी नही कर पाई क्योंकि
कोली खुद ही किलेदार थे और किलों की
Негізгі бет कोली या कोरी क्षत्रियों का पूर्ण परिचय
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