मोको कहां ढूंढे रे बंदे - संत कबीरदास
मोको कहां ढूंढे रे बंदे,
मैं तो तेरे पास में।
मोको कहां ढूंढे रे बंदे,
मैं तो तेरे पास में
दौड़त दौड़त दौड़िया, जेति मन की दौड़ ।
दौड़ी थका मन थिर भया, वस्तु ठौर की ठौर।।
ना तीरथ में ना मूरत में,
ना एकांत निवास में
ना मंदिर में, ना मस्जिद में,
ना काबे कैलाश में
मैं तो तेरे पास में
ज्ञानी भूले ज्ञान कथि, निकट रहा निज रूप।
बाहिर खोजे बापुरे, भीतर वस्तु अनूप।।
ना मैं जप में, ना मैं तप में,
ना मैं व्रत उपवास में ।
ना में क्रिया क्रम में रहता,
ना ही योग संन्यास में।
मैं तो तेरे पास में.....
ज्यों तिल माहीं तेल है, ज्यों चकमक में आग।
तेरा साई तुझ में है, जाग सके तो जाग।।
नहीं प्राण में नहीं पिंड में,
ना ब्रह्माण्ड आकाश में ।
ना मैं त्रिकुटी भवर में, मैं तो तेरे पास में....
सब स्वांसो के स्वास में ।
जो तू चाहे मुक्ति को, छोड़ से सबकी आस ।
मुक्त ही जैसा हो रहे, सब कुछ तेरे पास।।
Негізгі бет मोको कहां ढूँढे रे बंदे | Acharya Prashant
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