2012 में उत्तरी माली हथियारबंद जिहादियों के कब्जे में आ गया. नतीजतन फ़्रांस के नेतृत्व में इस इलाके को आजाद करने के मकसद से "ऑपरेशन सरवाल" शुरू हुआ. लेकिन संकट और बढ़ गया.
माली का संकट दरअसल विफलता की कहानी है. इस राष्ट्र की विफलता, के साथ-साथ इसका समर्थन करने वाले अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भी विफलता. इसी कारण जिहादी वहाँ पनपे. लेकिन ये सब कैसे हुआ?
2000 के दशक की शुरुआत में माली में अल्जीरियाई जिहादियों के आने के साथ ही यह संकट शुरू हुआ. उस समय, उनके आगमन ने सत्ता में बैठे लोगों को चिंतित नहीं किया. वे मानते थे कि अगर उन्होंने जिहादियों को अपने मन का करने दिया तो वे सुरक्षित रहेंगे. जैसे ही समस्याएं पैदा हुईं, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने माली से मुंह मोड़ लिया जिसे एक वक्त अफ्रीका में लोकतंत्र का चेहरा माना जाता था.
जब जिहादियों ने आखिरकार उत्तर पर नियंत्रण कर शरिया कानून लागू कर दिया, तब फ्रांस ने सेना भेजी. लेकिन बिना किसी राजनीतिक समाधान के सेना कुछ नहीं कर सकी. सहायता राशि का गबन हुआ और भ्रष्टाचार फैल गया. और जब तक फ्रांस ने वहाँ से निकालने की सोची, माली का संकट बुरकिना फासो और नाइजर तक फैल चुका था.
इस सब में, पीड़ित नागरिक भुला दिए गए। साहेल हिंसा के कारण बीस लाख से अधिक लोग शरणार्थी हो गए, एक संख्या, जो दो साल से भी कम समय में चौगुनी हो गई है. ये शरणार्थी जहां-तहाँ बस रहे हैं, क्योंकि वे जिंदा रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
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Негізгі бет माली संकट का अंत नहीं [The crisis in Mali] | DW Documentary हिन्दी
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