कहते हैं कि सारे सागर के पानी की स्याही बना दी जाए और सारे संसार के वृक्षों की कलम, फिर भी ढ़ाई आखर प्रेम पर लिखना असम्भव है। हर प्रेमी की अपनी ही अनुभूति।
एक सखी जिसे हर क्रिया में श्याम ही श्याम की अनुभूति होते हुए भी मिलन से कोसों दूर।
जित देखूँ तित श्याम मयी की स्थिति में भी वियोग की पराकाष्ठा।
एक विरहन् की पीड़ा को सिर्फ एक विरही ही अनुभूत कर सकता है।
उसी वेदना को अनुभूत करके अर्थात उसमें समाकर उसे व्यक्त करना पूज्य विनोद अग्रवाल जैसा ही प्रेमी कर सकता है।
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