पंडित रामकिशन व्यास #ramkishan Vyas #डॉ जय भगवान व्यास #kaviyon ki baat #कवि सम्मेलन #haryanvi ram
भूमिका
लोक साहित्य लोक-संस्कृति और लोक जीवन के आचार-विचार, आदर्श
और धर्म एवं रुचि को समझने-समझाने का सर्वोत्तम साधन है। हरियाणवी लोक
साहित्य उक्त सभी विशिष्टताओं का वाहक है। हरियाणा की लोक-संस्कृति,
लोकधर्म, लोकादर्श, लोक- विश्वास, रुचि एवं संस्कारों को हरियाणवी
लोक-साहित्य के अध्ययन से समझा जा सकता है। अध्ययन की सुविधा के लिए
लोक-साहित्य को लोक-गीत, लोकगाथा, लोक-कथा एवं लोकनाट्य आदि
विधाओं में विभाजित किया जाता रहा है। इन विधाओं में लोकनाट्य सर्वाधिक
लोकप्रिय विधा रही है। इस विधा में लोक जीवन के आचार-विचार, रुचि, संस्कार,
आदर्श, धर्म आदि आरम्भ से अन्त तक व्याप्त रहते हैं। हरियाणा में प्रचलित
लोकनाट्यों में सांग, सर्वाधिक लोकप्रिय नाट्य रहा है। सांग वह जनरंजनकारी
लोक नाट्य है जिसमें गीत, संगीत, नृत्य और कथा का ऐसा संगम होता है जिसको
देख- सुनकर सहृदय अभिभूत हो जाता है। सभी सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक
मूल्यों की स्थापना करने में सक्षम यह विधा मनोरंजन के साथ-साथ समाज की
समस्त रुचियों, भावनाओं, आचार-विचारों, सुन्दर कल्पनाओं, रहन-सहन आदि
समस्त कार्य-व्यापारों को अधिक स्पष्टतः मुखरित एवं प्रतिबिम्बित करती है।
हरियाणा में इस विधा के पोषक अनेक लोक कवि एवं सांगकार हुए हैं।
जिन्होंनें भाव एवं कला पक्ष दोनो ही दृष्टियों से सम्पन्न सांगों का सृजन एवं मंचन किया
है। लेकिन इनका प्रकाशन नाम-मात्र हुआ है। हरियाणवी लोक-भाषा और आंचलिकता
के प्रभाव में रचित यह सांग साहित्य यदि प्रकाशित किया जाए तो हिन्दी साहित्य में इस
लोक भाषा को भी वही स्थान और सम्मान प्राप्त हो सकता है जो ब्रज और अवधी भाषा को
मिला है। इस अभाव की पूर्ति के लिए आवश्यकता है हरियाणवी लोक भाषा के कवियों
और सांगकारों की रचनाओं के व्यवस्थित संकलन और प्रकाशन की। इसी उद्देश्य को
केन्द्रित करके प्रस्तुत ग्रन्थावली के प्रकाशन का सारस्वत प्रयास किया गया है।
सांग से मेरा परिचय बाल्यकाल से ही रहा है, यदि यूँ कहूँ कि सांग मुझे दाय
रुप में मिले हैं तो गलत न होगा। क्योंकि मेरे पूज्य पिता श्री महाबीर व्यास और ताऊ श्री
रामकिशन व्यास दोनों ही व्यवसाय से सांगकार थे। स्वभावतः बालपन से ही सांगों में मेरी
रुचि रही है। हिन्दी विषय में स्नातकोत्तर उपाधि हेतु अध्ययन के दौरान लोक साहित्य
विषय पढ़ने से मेरी इस रुचि का परिमार्जन हुआ तथा मैं सांगों के विषय में शोधात्मक
दृष्टिकोण अपनाते हुए हरियाणा के पुराने सांगियों, लोककवियों एवं बुजुर्गों से यथासमय
चर्चाएँ करने लगा। परिणाम स्वरुप एम. फिल. उपाधि हेतु "पं. रामकिशन व्यास
रचित सांग कम्मों-कैलाश का सम्पादन एवं साहित्यिक विश्लेषण" शीर्षक
विषय पर तत्कालीन प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय) परमपूज्य गुरुवर
डा. राजदेव सिंह के निर्देशन में लघु-
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