परम शून्य के उत्पन्न होने से लेकर मिटने , और फिर से लम्बे अरसे के बाद उत्पन्न होकर सृष्टियों की संरचना करना और फिर मिटा देना | यही चलता रहता है | जिसमें सभी जीवों की चेतना बार बार जन्म लेती रहती | और ये अस्थिरता ही हमारी चेतना का गुण भी है |
यही बार बार के जन्म मरण के चक्कर हमारी ही इच्छाओं के पूरा न होने के कारण होता रहता है क्योंकि हमारी एक इच्छा पूरी हो जाती है तो अगली इच्छा जन्म ले लेती है | और ये सिलसिला ख़तम ही नहीं होता है | इसीलिए हमारा जन्म भी बार बार होता रहता है | करोड़ों जन्मों के बाद जब कोई किसी एक जन्म हर एक व्यक्ति का होता है जिसमें हमें कुछ लम्बे समय के लिये विश्राम मिलता है जब ख़ुद परम शून्य सिमट कर विश्राम करता है | उसके बाद जब परम शून्य फिर से उत्पन्न होता है तब हमारी यात्रा फिर से शुरू हो जाती है | इसीलिये इस बारम्बार के जन्म मरण को बन्धन खा गया है | जिसमें सभी जीव फंसे हुये हैं | इससे बाहर नहीं निकल पाते हैं |
परन्तु एकरस सदा स्थिर सर्वव्यापी परमात्मा के गुण ऐसे हैं की जिनका हम अहसास करते रहे तो हमारी इच्छाएँ ख़त्म होने लगती हैं और हमारे जन्म भी कम होने लगते हैं 6 - 7 जन्म में हमें पूरण मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है | क्योंकि ये 6 -7 जन्मों में हमारी इच्छाएँ समाप्ति की ओर बढ़ रही होती हैं और फिर वह जन्म होता है जिसके बाद हमारा अगला जन्म होता ही नहीं है |
Негізгі бет परम शून्य के साथ हमारी चेतना की लम्बी यात्रा || Parm Shuny ke saath hamari chetna ki lambi yaatra
Пікірлер: 12