topic- power of positive thinking। उतावलेपन का दुष्परिणाम #audio #motivation #positivevibes #positive #som
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अध्याय 17 ! उतावलेपन का दुष्परिणाम!
एक व्यक्ति अपने ऑफिस में बैठा बार-बार फोन पर नंबर डायल कर रहा था, किंतु नंबर मिल नहीं रहा था। वह जिससे संबंध स्थापित करना चाह रहा था, उससे संबंध स्थापित नहीं हो पा रहा था और हर बार इंगेज टोन आ रही थी। उसके इस उतावलेपन का कारण यह था कि वह एक बड़ी कंपनी का स्वामी था और उसकी कंपनी के शेयरों के भाव अकस्मात तेजी से गिरते जा रहे थे।अपनी कंपनी की तेजी से गिरती साख से वह बहुत उत्तेजित और परेशान था और कुछ अच्छा सोच भी न पा रहा था। इस समय वह चाहता था कि जितनी जल्दी हो सके, वह अपने ब्रोकर से संपर्क स्थापित करके उससे सही जानकारी ले और कुछ आवश्यक निर्देश भी उसे दे, किंतु ब्रोकर का फोन नहीं मिल रहा था, जिसे वह पिछले आधा घंटा से ट्राई कर रहा था। धीरे-धीरे उसका पारा चढ़ता जा रहा था। अंततः उसने क्रोधित होकर फोन को जमीन पर पटक दिया। वह पसीने-पसीने हो रहा था। उसका शरीर कांपने लगा था और फिर उत्तेजना इस हद तक बढ़ गई कि वह बेहोश होकर कुर्सी पर लुढ़क गया। ऐसे समय में उसे उतावलेपन से काम नहीं लेना चाहिए था, बल्कि ठंडे दिमाग से सोचना चाहिए था कि इस मुसीबत से वह कैसे निकले। 'मेरा अनिष्ट होता जा रहा है', उसकी ऐसी नकारात्मक सोच ने ही उसे इस अवस्था को पहुंचा दिया। किसी भी काम को सुस्ती से नहीं, बल्कि तेजी से करना चाहिए तथा आज
का काम कल के लिए भी नहीं टालना चाहिए, किंतु इसका अभिप्राय यह नहीं कि आप जो भी काम करें, उसमें उतावलापन दिखाएं। उतावलेपन से किए गए काम का दुष्परिणाम जल्दी ही सामने आ जाता है। आपके काम अटके हुए हैं, पूरे नहीं हो पा रहे हैं। आप उन्हें खत्म करने में उतावलापन कर रहे हैं, काम है कि फिर भी निपट नहीं पा रहे हैं। हर बार कुछ गलती हो जाती है। इसका कारण केवल उतावलापन है। यदि काम में सुस्ती न हो तो उतावलापन भी न होना चाहिए। तेज चलना और दौड़ना दोनों में बहुत फर्क है। प्रत्येक कार्य को शांति और आनंद के साथ और सोच-समझकर करना चाहिए। एक कंपनी के फ्रंट ऑफिस में एक व्यक्ति कंप्यूटर के सामने बैठा था और उसकी उंगलियां बड़ी तेजी से की-बोर्ड पर चल रही थीं। यह देख मैनेजर ने उसे बुलाया और कहा कि वह अपने सभी सहयोगियों को इसी प्रकार तेजी से काम करने की सलाह दे, किंतु उसने सभी लोगों से कहा कि आप सब तेजी से नहीं, बल्कि धीरे से काम करिए, तो उसकी यह बात सुनकर मैनेजर चौंक पड़ा। उसने उस व्यक्ति से पूछा, 'तुमने ऐसा क्यों कहा?' "कभी-कभी की-बार्ड पर मेरी उंगलियां इसलिए तेजी से चलती हैं, क्योंकि मेरे मन में यह बात होती है जो मस्तिष्क में आया है, उसे यदि जल्दी से न लिख दिया तो कहीं वह मस्तिष्क से निकल न जाए, अन्यथा मेरा यह अनुभव है कि जिस सप्ताह मैं कंप्यूटर पर अपनी गति आधी रखने का प्रयास करता हूं, उस
सप्ताह के अंत में मेरी गति निश्चित रूप-से सदा से अधिक हो जाती है और यह नियम सभी कामों में काम देता है। मैं समझता हूं, सकारात्मक ढंग से काम करने का यह एक अच्छा तरीका है।"
मेरे एक मित्र थे, जो वायलन पर एक गत बजाना सीख रहे थे, किंतु वे गत पकड़ नहीं पा रहे थे। उनके म्यूजिक टीचर ने जो स्वर लिख दिए थे, वे उसे तेजी से बजा लेना चाहते थे और हर बार असफल हो रहे थे। इस कारण वे झल्ला रहे थे। फिर टीचर के कहने पर उन्होंने वायलन को बहुत धीरे-धीरे बजाना शुरू किया। इस बात का बड़ा अच्छा प्रभाव पड़ा। एक सप्ताह में ही यह स्पष्ट हो गया कि अब वह गत मनचाही तेजी से और सही ढंग से बजा पा रहे हैं। उन्हें ऐसा लगता, जैसे वायलन खुद ही बज रहा है। यह बात हरेक काम में लागू होती है। किसी भी चतुराई भरे काम को करने
की रीति या कला तब तक पूरी तरह हस्तगत नहीं हो सकती, जब तक कि उसके कार्य की पद्धति हमारे अंतर्मन में स्थापित न हो जाए, जब तक कि हम उस पद्धति की ओर ध्यान दिए बिना उसे करने न लग जाएं और जब तक उस कार्य को करने में आनंद न आने लगे। एक संगीतकार का अंतर्मन उसकी उंगलियों को साजो
पर स्वयं चलाता रहता है, यह बात सदा याद रखिए। किंतु जब हम उतावलेपन से काम लेते हैं, तब हमारे अंतर्मन को अपना काम स्वाभाविक रीति से करने में बाधा पड़ती है। जल्दबाजी की दशा में मस्तिष्क तेजी से काम करने की इच्छा का भार काम पर लाद देता है। इससे अंतर्मन की काम करने की अपनी गति बिगड़ जाती है और काम जल्दी होने के बजाय देरी से होता है। जब हम कुछ सीख रहे होते हैं या कोई काम करते हैं, तब हम जो करते हैं, वह हमें सोचकर करना पड़ता है और बार-बार वो ही काम करने पर उसकी पद्धति हमारे अंतर्मन पर अक्स हो जाती है। काम के साथ जोर-जबरदस्ती, अंतर्मन की इस स्वाभाविक पकड़ में बाधा पहुंचाती है। इसी प्रकार काम को धीरे-धीरे सीखने पर, उस पर जल्दी का बोझ न डालने पर हम उस काम को पूरी तरह सीखते हैं और फिर हम उसे बिना कोशिश के बड़ी आसानी से कर सकते हैं।
जल्दबाजी का हमारे कार्य करने की गति से कोई संबंध नहीं है। जल्दबाजी तो केवल एक मानसिक अवस्था है। एक व्यक्ति तेजी से कंप्यूटर के की-बोर्ड पर उंगलियां चला रहा है, वह जबरदस्ती कर रहा है, अपनी गति में तेजी लाने के लिए अपनी पूरी इच्छाशक्ति लगा रहा है तो इसका अर्थ है कि वह जल्दबाजी से काम ले रहा है।
इसके विपरीत एक दूसरा व्यक्ति बिना किसी प्रयास के, स्वयं पर बिना किसी तरह का जोर डाले दूनी तेजी से काम करता है, तो उसके मन में कोई तेजी नहीं है और तेजी से काम करने का उसके मस्तिष्क पर कोई भार भी नहीं है। वह अपना काम तेज करता है, पर मन से जल्दी नहीं। काम धीरे सीखने की पद्धति का रहस्य यह है कि यह हमें अभ्यास का मौका देता है और हमारे मस्तिष्क को कार्य के भार से सर्वथा मुक्त रखता है।
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