श्री दिगम्बर जैन शांति निकुंज उदासीन आश्रम, सागर
Udasin aashram, Sagar
॥ श्री शांतिनाथाय नमः ||
इकतीस वर्ष की अवस्था में वर्णी जी ने सागर में श्री सर्तकसुधा तरंगणीय विद्यालय की स्थापना १९०५ में की एवं सन् १९३८ में महिलाश्रम प्रारंभ हुआ। दोनों संस्थाओं का प्रारंभ किराये के मकान में हुआ एवं आज सर्वरूप से स्वतंत्र है। समाज सेवा में लगी है।
आपके कार्य उपदेश से सागर धर्मनगरी बन गयी एवं भारत के नक्शे पर आ गई।
छात्रों एवं महिलाओं के उत्थान से गृहस्थों में अपने जीवन के सध्या काल को श्रेष्ठ बनाने के उद्देश्य से अपने लिए कुछ हो, यह भावना प्लावित होने लगी एवं कुछ करने को वर्णों जी के चरणों में बार-बार जाने लगे। यह वह समय था जब वर्णों जी का अधिकांश समय सागर में ही बीतता था। एवं बड़े पंडितजी के नाम से वह राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुके थे। वर्णों जी उदासीन आश्रम खोलने के पक्ष में नहीं थे यह बात उनके पत्रों में स्पष्ट झलकती है। गृहस्थों का आग्रह वह टाल नहीं सके एवं अपनी सहमति दे दी। आषाढ सुदी ७ विक्रम संवत २००१ में उदासीन आश्रम को स्थापना की गई। उदासीन आश्रम जौहरी बाग (जौहरी गुलाबचन्द का बगीचा) में प्रारंभ हुआ। इस स्थान को शांन्ति निकुंज कहा गया। संस्था की पहली बैठक १३ अगस्त १९४४, भाद्रपद बंदी १० वीर निर्वाण संवत २४७० को जौहरी बाग में श्री मुनालालजी वैशाखिया की अध्यक्षता में हुई। वर्णों जी स्वयं उस बैठक में रहे। संस्था के स्थापना पदाधिकारी अध्यक्ष सेठ भगवानदास जी बीड़ी वाले, मंत्री, पं. दामोदर दास बनाये गये व धरमचन्द सहजपुर पहले ब्रह्मचारी बने। संस्था को उन्होंने एक हजार रुपया दान दिया। ब्रह्मचारियों की संख्या बढ़ती गई, २० तक हो गई। समाज द्वारा वर्णों जी को दिये गये वचन के अनुसार त्यागियों का भोजन गृहस्थों के आमंत्रण पर निज निवास पर होता था। यह क्रम निर्वाध रूप से १९५० तक चला। तदोपरान्त आश्रम में भोजनशाला प्रारंभ हुई। ब्रह्मचारियों के अध्यापन की व्यवस्था भी चलती रही. पन्नालालजी साहित्याचार्य एवं प.माणिकचंदजी काव्यतीर्थ ने कार्य निरन्तर संभाला।
उदासीन आश्रम के प्रारंभ होते ही वर्णी जी के निरन्तर यहाँ रहने के कारण समाज एवं ब्रतियों का तीर्थ स्थल बन गया। श्री सहजानन्द वर्णों ,दीपचन्द वर्णों, व पूरनचंद व छोटेलाल जी, शीतल प्रसाद आदि यहाँ रहे।
२३ जून १९५४ को स्वतंत्रता आन्दोलन में बाल्य अवस्था में सम्मिलित हुए डालचन्द जी भारत के स्वतंत्र होने पर १९४७ में रायपुर जेल से मुक्त हुए, जीवन को नई डगर तलाशते रहे और आश्रम को अपना स्थान बना कर ब्रह्मचारी हो गये। उस समय बालचन्द अधिष्ठाता थे डालचन्द जीवनभर उदासीन आश्रम सागर में रहे। शासन ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी माना, सुविधायें का उन्होंने लगभग उपयोग नहीं किया। जीवनभर यहां रहे। आश्रम की सम्पत्ति भूमि को सुरक्षित रखने एवं भगवान शान्तिनाथ जैन मंदिर के निर्माण में उनको भूमिका भुलाई ही नहीं जा सकती। यह पूरा जिनालय डालचंद जी ने निर्माण लगे पूरे जल को अपने हाथ से सावधानी से छानकर लगाया ! और आचार्य श्री विद्यासागर जी ने १९८० मे सागर में षट्खण्डागम की पहली सार्वजनिक वाचना की। अपने उपदेश में ब्राह्मी विद्या आश्रम का संकेत दिया एवं संचालिका आशा मलैया के आवेदन पर शांति निकुंज परिसर में ब्राह्मी विद्या आश्रम भवन के निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ। १५ जनवरी १९८७ गुरुवार को आश्रम में बहनों का प्रवेश हुआ। आश्रम की अनेक बहने आज आरिका का है।
शांति निकुंज में भगवान शान्तिनाथ जिनालय का पंच कल्याणक प्रतिष्ठा फरवरी १९८४ में सम्पन्न हुई। उस अवसर पर मूडबढी कर्नाटक के भट्टारक वास्कीर्ति पंडिताचार्य स्वामी जी पधारे।
सन् २०१४ में मुनि श्री क्षमासागर जी का चातुर्मास यहां हुआ। मुनि श्री अत्यंत अस्वस्थ थे, यह उनका अंतिम चर्तुमास रहा। वैयावृत्ति के प्रति ऐसा गृहस्थों का समर्पण जिन्होंने जाना/ देखा उसे आत्मसात किया।
पता-
श्री दिगम्बर जैन शांति निकुंज उदासीन आश्रम
वर्णी बाग, वेदान्ती रोड, पंतनगर, सागर (म.प्र.)
संपर्क सूत्र - 9425193595, 7709093997, 9425451481
Google map link-
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पहुँचने के लिए कैसे करें?
सड़क मार्ग: सागर सड़कों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
ट्रेन: सागर रेलवे स्टेशन, बीना रेलवे स्टेशन
हवाई अड्डा :- भोपाल
तीर्थ में ठहरने की सुविधाएँ:
कमरे:- हाँ
हॉल:- हाँ
गेस्ट हाउस :- हाँ
टेंट के लिए ग्राउंड :- हाँ
भोजनशाला :- हाँ
शादी विवाह सुविधा - हाँ
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