देवराज के पुत्र सुजावदेव के बाद कीर्तिपाल,बालपसाव,राजिमदेव,और देया हुए । ये अजमेर के पास भिनाय गांव में बसे भिनाय - राणक से निकास के कारण भोजावत राणकरा सोलंकी भी कहे जाने लगे । इनके पुत्र भोजराज जी सिरोही के लास (लाछ गॉव) चले गये । राजा भोजराज ने सिरोही के लाखा को 12 बार हराया 13वी बार ईडरेड सामंत के साथ मिलकर लाखा ने विश्वासघात करके राजा भोजराज से लास (सिरोही) छीन लिया। राजा भोजराज यहां शहीद हुये। आज भी वीरागनाओ ओर शहीदो की छतरिया उनकी अपूर्व गौरव गाथा को याद दिलाती है। इसी भोजराज जी के वंशज भोजावत सोलंकी हुये। बालपसाव के छोटे भाई भी उदय सिंह थे वे बुवाले गांव चले गये इस लिये वे बुवाले सोलंकी कहे जाने लगे (गोवर्धन शर्मा के एक लेख राजपूत अप्रैल 1998 pr.18) सिरोही के बघिना गांव के शांतिनाथ मन्दिर के एक शिलालेख वैसाख सदी 10 स. 1356 से ज्ञात होता है कि शांतिनाथ मन्दिर के हित के लिए सोलंकियों ने अपने खेत और कुँए अनुदान में दे दीये। इससे स्प्ष्ट होता है कि वि. स. 1356 सोलंकी राजपूतो के अधिकार में था। यह भोजराज और लाखा वि. स. 1508- 1540 के समय का था, इससे पूर्व का था। भोजराज के बाद त्रभवती, पाता,और रायमल हुए। यह रायमल वि. स. 1530-1566 चितौड़गढ़- मेवाड़ के पास चले गये थे। देसुरी में ही सोलंकियों द्वारा एक मंदिर का जीणोद्धार करना लिखा है जिसका शिलालेख लाखा के समय का आषाढ़ सुदी 3 स. 1475 का है इससे स्प्ष्ट होता है कि देसूरी में सोलंकी रायमल के समय से पहले ही थे। राणा ने सोलंकियों को देसूरी की जागीरी दी देसूरी पर मादरेचा चौहानो का शासन था और देसूरी के चौहान मेवाड़ के साथ थे लेकिन वो अपनी मन मानी करते थे वो मेवाड़ के राणा की कोई बात नही मानते थे उस समय सोलंकियों को शरण देने के लिये राणा के पास कोई उचित जगह नही थी तब चितोड़ के राणा ने देसूरी के चौहानो को हटाने को कहा लेकिन सोलंकियों ने चितोड़ के राणा को कहा वो भी राजपुत हम भी राजपूत हम ही एक दूसरे को मारेंगे तो राजपूत एक दूसरे का शत्रु बन जायेगा तब राणा ने सारी बात सोलंकियों के सामने कहि उसके बाद सोलंकियों ने 140 मादरेचा चौहान को मार गिराया और चौहानो ने सोलंकियों के सामने हतियार डाल दिये और देसूरी छोड़ कर चले गये रायमल सोलंकी के पहले पुत्र शंकर सोलंकी के वंशजो के अधिकार में भीलवाडा - मेवाड़ था। जोधपुर राज्य में गोडवाड़ में कोट नामक ठिकणा देसूरी के सोलंकियों का था रायमल के दूसरे पुत्र सावतसी रूपनगर में रहे । रायमल के पुत्र सावतसी के पुत्र देवराज वीरमदेव ( वीरमदेव यह बहोत वीर,साहसी, औऱ एक कुशल शासक थे देसुरी के मेवाड़ और मारवाड़ के राजा महाराजा भी इनकी तारीफ करते थे ) जसवंत व दलपत आदि हुए इनके समय देसूरी 140 गावो का एक मात्र ठिकाणा था । भोजराज सोलंकी के दूसरे पुत्र सुल्तान सिह सोलंकी के पुत्र ने जिनमे अखेराज विशेष वीर साहंसी थे सबने मिलकर रायमल सोलंकी वि. स. 1530- 1566 के समय वि. स.1535 में जीवराज यादव को मार कर पानरवा - मेवाड़ पर अधिकार कर लिया पानरवा - मेवाड़ का स्वामी अखेराज को बनाया गया इसके बाद राजसिंह,महीपाल,हरपाल, और नरहर सिह हुये । चितोड़ के राणा उदय सिंह ने हरपाल को राणा की उपाधि दी ओर नरहर सोलंकी को ओगना गांव की जागीरी दी इनके अतिरिक्त मेवाड़ में माछया,खेडी, सज्जनपुरा,चदरिया,खाचरोद,सोलंकियों का खेडा,हरीसिह का खेड़ा,आदि गांव भी सोलंकियों की जागीर में थे बूंदी राज्य में नेनवान गांव भोजावत सोलंकियों का ठिकाना था पर बाद में नाथावत सोलंकियों के अधिकार में हुआ । सावंतसी का भाई भैरवपाल् सोलंकी ने चितौड़गढ़ पर बहादुरशाह द्वारा किये गये वि. स. 1592 के आक्रमण के समय युद्धभुमि में अपनी तलवार बजायी और अफ़गानों के लाशो को रोंद्ता हुआ आगे बढ़ता चला गया । भेरवपाल सोलंकी के नाम से ही भैरवपोल चितोड़ हुआ
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