रूपनगर राजसमन्द और पाली जिले के मध्य अरावली की खुबसूरत पहाडियों में स्थित है जिसका इतिहास -
मेंंवाड और मारवाड के बीच गोडवाड़ परगना दोनों विवादीत भूमि रही । साल 1771 ईस्वी (1827 वी.एस.) के दौरान राणा अरीसिह- द्वितिय मेवाड और महाराज विजयसिंह मारवाड़ के शासक थे । उस समय मेवाड़ चुुुण्डावत रतनसिंह का समर्थन कर रहे थे । गृह युद्ध के तहत किया गया । शेखावत, अरीसिह- द्वितिय के समर्थन मे थे। अरिसिह गोडवाड़ के लिए जवाबी कार्यवाही करने मेंं सक्ष्म नही थे। इस प्रकार विश्वासघात करके राठोडो ने गोडवाड़ प्राप्त किया मेंंवाड के राणाओ ने मारवाड शासन को स्ववीकार कर लिया। जो गोडवाड़ के मेंंजर ठिकाना । मुख्य धनेराव के ठाकुर वीरमदेव, खोड के ठाकुर उम्मेदसिह, ओर चाणोद के ठाकुर विसनसिह थे। देसूरी के केवल ठाकुर वीरमदेव सोलंकी ने राठोडो को आत्मसमपर्ण करने से इनकार कर दिया। सभी तीनो ठिकानो ने आत्मसमपर्ण कर दिया था। गोडवाड़ के इन तीन और कई अन्य राजपूत सभी जोधपुर महाराजा के शासन को स्वीकार करने के, ठाकुर वीरमदेव सोलंकी को सलाह दी लेकिन वीरमदेव सोलंकी मेंवाड़ के राणा को धोखा नही दे सकता था एक सच्चा राजपूत था। ठाकुर वीरमदेव सोलंकी को सलाह करने को कहा मेंवाड़ के राणा ने भी ठाकुर वीरमदेव को देसूरी छोड़ देंने की बात कही लेकिन वे पीछे नही हटे । मेंवाड़ के राजपूत चुुुण्डावत, शक्तावत, राणावत, कीसी ने भी देसूरी के सोलंकियों का साथ नही दिया समंद तनो तज नीर,लागे कुन डाबर लारे । हिन्दूपति ने पर हरे, धनी दूजो कुन धारे ।।। ठाकुर वीरमदेव सोलंकी जोधपुर की विशाल सेना जो कि 50,000 के लगभग थी उनके खिलाफ जितने की कोई सम्भावना नही थी वह जानते थे, ओर पराजित हुए तो वह अपना क्षेत्र खो देंगे, ओर पड़ोसी ठिकानों से कोई समर्थन नही मिला सोलंकी राजपूत अकेले पड़ गए थे फिर भी वीरमदेव सोलंकी ने हार नही मानी देसुरी में घमासान युद्ध हुआ फिर भी देसूरी के छोटे किले को भी नही जीत पा रहे थे फिर जोधपुर महाराज विजयसिह राठोड ने मुगलों द्वारा सम्भूभान तोप अभी भी जोधपुर में प्रदशित तोप है। सम्भूभान,धोधीदार,ओर आइनदान ओर चम्पावत जेतसिह खुशालसिहघोत के साथ देसूरी पर कब्जा करने के लिए भेजा गया था। देसूरी पूरी तरह से राठोड़ो, मुगलो,ओर अन्य दिया गया और मारवाड़ सेना किराजपूतो द्वारा घेर लिया गया था जिसके कारण सोलंकियों के पास बन्दूक,तोपखाने,सब खत्म हो चुके थे । ओर सम्भूभान तोप से किले की मजबूत दीवार को नष्ट करले में घुसने में सफल हो गई 150 सोलंकी राजपूत अपनी आखिरी सांस तक लड़े फिर धीरे धीरे एक एक करके देसुरी के सैनिक वीरगति को प्राप्त करते जा रहे थे ओर किला हाथो से फिसला जा रहा था लेकिन विरमदेव सोलंकी ओर उनके सैनिक तलवार बजाये जा रहे थे राठोड अब किले में प्रवेश हो चुके थे। जेतसिह, खुशालसिंहघोत चल रही लड़ाई को रोकने में सक्षम हो गया और वीरमदेव सोलंकी की बहादुरी देख कर उनको देसूरी छोड़ कर जाने को कहा ओर एक सुरक्षित मार्ग का आदेश दिया फिर वीरमदेव सोलंकी ओर शेष योद्धाओं ने देसूरी छोड़ दिया और अरावली से सटे रूपनगर के पास आ गये जोधपुर के महाराज विजयसिंह देसुरी के हकीम के रूप में सिध्वी शिवचंद को नियुक्त किया गया ठाकुर वीरमदेव सोलंकी द्वारा बनाया गया रूपनगर का किला आज भी सोलंकी राजपूतो की वीरता का प्रतीक है लेकिन अब भी वीरमदेव सोलंकी देसूरी को नही भूले थे उन्होंने कहा देसुरी सोलंकियों की नही तो और किसी अन्य राजपूत की भी नही हो सकेगी गोडवाड़ में आज भी लोकप्रिय कहावत के रूप में कहते है और वीरमदेव सोलंकी को आज भी अपने लोगों द्वारा याद किया जाता है।
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Негізгі бет सोलंकी राजपूतो का ठिकाना रूपनगर, राजसमन्द (मेवाड़) भाग १ Roopnagar Rajsamand
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