डॉ पिल्लई:
दूसरों की तुलना में, खुद से प्यार करना आसान है। लेकिन समस्या यह है, कि आप, खुद से भी, 100% प्यार, नहीं कर पाते हैं । अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो आप, अपने आप को ही, स्वयं से प्यार करने की, पर्याप्त अनुमति नहीं देते हैं।
आप खुद को आराम नहीं देना चाहते। ना तो शारीरिक तौर पर, ना सामाजिक तौर पर, और ना ही आध्यात्मिक तौर पर । और इसी वजह से, आप, हर जगह पर, अधूरे ही रहतें हैं।
ऐसा इसलिए होता है,क्योंकि हर व्यक्ती, इस दुनिया के चालचलन से, भ्रमित रहता है।
यह, काफी विचीत्र है। तो, ऐसी विचित्र मानसिक स्थिती से, बाहर आने हेतु, आप क्या कर सकते हैं?
एक चीज, जो आप, अभी कर सकते हैं, वह यह है, कि जो बात मैने अभी अभी बताई, उस बात की जांच करें, और देखें, की क्या, आप के साथ भी, ऐसा ही सबकुछ हो रहा है?
मैं कहुँगा, की प्राथमिक स्तर पर, खुद से ही ज्यादा प्यार करें, क्योंकि, ऐसा करना सबसे आसान है।
शुरुवाती दौर में, दूसरों से प्रेम करना, बहुत ही कठिन है। और यदि आप, दुसरों से प्रेम करने की, कोशीश करते भी हैं, तो, यह प्रेम, बहुत ही उपरी स्तर पर होता है। हृदयपुर्वक और प्रामाणिक, नहीं होता।
प्रामाणिक प्रेम, शायद, आपके आसपास ही मौजुद हो सकता है, जिसे आप आराम से पा सकतें है।
किन इसके विपरीत, आपका मन, आपको, अपने अहंकार की ओर इशारा कर, अपनी ही इंद्रियों की तृप्ती के बारे, याद दिलाता रहता है।
अपने आजुबाजू में मौजूद प्रेम को न पहचानना, और अपनी ही धुंद में खोए रहने की अवस्था को, मैं भ्रमित अवस्था कहता हुँ। इसे आप को ही ठीक करना पडेगा।
तो अब देखतें हैं, की इस अवस्था को, आप कैसे ठीक कर सकतें हैं?
इसे करने के, कई सारे तरीके हैं।
सबसे पहले, आपको बहुत सतर्क होना होगा, और मन ही मन में, इस बात का विश्लेषण करना पडेगा, कि आप एक निश्चित समय में, क्या सोच रहे हैं।
फिलहाल, ऐसा कोई प्रशिक्षण उपलब्ध नहीं हैं, जो हमें, हमारी विचार प्रक्रिया को विनियमित करने के लिए, हमारे भ्रम को नियंत्रित करने के लिए, और हमारी अज्ञानता को नियंत्रित करने के लिए, सहाय्य करें। इसलिए, हमें पल पल रुककर, अपने विचारों को जांचना है।
ऐसा करने हेतु, मैं कुछ ऐसी तकनिकें, आप के साथ साझा करना चाहुॅंगा, जो आपको, अच्छे विचारों के प्रति, जागृत रहना सिखाएँगी।
ये तरिके, मैं इस वर्ष के, गुरु पूर्णिमा दर्शन सत्र के दौरान सिखाऊंगा। इस सत्र के दौरान, मैं कुछ तकनीकें देने की योजना बना रहा हूं। इसके दो चरण हैं।
पहला चरण-
सबसे पहले, आपको, आपके अशुद्ध विचारों को हटाकर, आप के मन में, केवल, शुद्ध विचारों को ही रखना होगा। ऐसे विचार, शायद ,दिन में, केवल १० ही हो सकते है। चलेगा। लेकिन आप को, आपके मन में, केवल अच्छे ही विचार रहें, ऐसी आदत, विकसित करनी होगी।
इसके बाद आता है, दुसरा चरण।
चुंकी यह गुरुपौर्णिमा का पर्व है, तो मैं, गुरुतत्व के महत्व के बारे में, बात करना चाहुँगा।
हर किसी को, गुरुकृपा की आवश्यकता होती है, क्योंकि, गुरु ही, आपके जीवन को, सर्वोत्तम मार्गदर्शन करतें हैं। गुरू को कोई अपना उद्देश्य नहीं होता। एक सच्चा गुरु, जिसे सद्गुरु कहा जाता है, वह वही है, जो पहले से ही सदा-सदा के लिए, परिपुर्ण होते हैं।
उनका, इस पृथ्वीतल पर, जन्म लेनें का भी, कोई उद्देश्य नहीं होता। वह सिर्फ, इंसानों की मदद करने के लिए, इस पृथ्वी तल पर, अपनी ही इच्छा से जन्म है। अंग्रेजी भाषा में, इन्हें ‘गाॅडमन’ यानी - दैवी पुरुष कहा जाता है। हर गॉडमैन, एक गुरु है।
तो आप को, किसी भी तरह से, ऐसे गाॅडमन की, यानी एक गुरु की कृपादृष्टी को, अपनी ओर आकर्षित करना चाहिए।
गुरू की कृपादृष्टी संपादन करने हेतु, आप को, क्या करना चाहिए?
आप को, अपनें गुरु से, आंतरिक प्रेम कर, अपने अहंकार, अपनी संपत्ति, और अपनी तमाम लौकिक धारणाओं को, श्रीगुरुचरणों में, समर्पित करना चाहिए। गुरुकृपा को, अपनी ओर, आकर्षित करने का, यही सबसे शक्तिशाली तरीका है।
ऐसा नहीं है, कि, सद्गुरु आप से, आपके पैसे छीन कर, भाग जाने वाले हैं।
बिल्कुल नहीं।
वह तो एक पूर्ण व्यक्ति है, जिसे किसी भी चीज की, आवश्यकता ही नहीं होती है। लेकिन, यह केवल आप को, मायाजाल से छुडाने हेतु, कि गयी लीला होती है।
एक बार, आपको गुरु की कृपादृष्टी प्राप्त हो जाए, तो उनके आशीर्वाद से, सब कुछ प्राप्त करना, पुर्णतः संभव हो जाता है।
याद रखें, की आप को अपने गुरू का दिल जितना हैं। उसके बाद, उनके केवल आप के बारें में सोचनें से ही, आप की भौतिक, एवं आध्यात्मिक, दोनो उन्नतीयाँ, अपनेआप साध्य हो जाती हैं।
तो यही दो मुख्य विषय हैं, जिनके बारें में, मैं, गुरु पूर्णिमा के दिन, अधिक विस्तार से बताकर, आप को, गुरूकृपा संपादन करने की, कुछ और तकनिकों से, उजागर करूंगा। आप सभी आमंत्रित है।
कल्याणमस्तु।
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