चोपड़ सार बिछाई lakhmichand kavita haryanvi kavita kavi sammelan kaviyon ki baat channel bhagat pura
आ खेल घड़ी दो-चार, या चौपड़ सार बिछाई,
घाल हाथ म्य हाथ, बैठज्या नाड़ झुकाकै ।।
इतौ मेला बिछड़ले, काणी की त्यारी हो,
ज्यूं-ज्यूं भिजै काम्बली, त्यों-त्यों भारी हो,
पड़या नौ बीघां का क्यार, घली ना एक हलाई,
बीज पड़या ना खात, बैठग्या टेम उकाकै !! 1 !
आ खेल घड़ी दो-चार, या चौपड़ सार बिछाई,
घाल हाथ म्य हाथ, बैठज्या नाड़ झुकाकै ।।
सारी दुनिया कहया करै, हो हथियार औसाण का,
बीत्या जा सै बखत भाई की सूं खेलण खाण का,
न्यूं रोऊ सूं सर मार, बता के खेली खाई,
खोली जात-जमात, सहम देईधाम धुकाकै !!2!
आ खेल घड़ी दो-चार, या चौपड़ सार बिछाई,
घाल हाथ म्य हाथ, बैठज्या नाड़ झुकाकै ।।
चाहे किसे नै बुझ लिये, सै बान्दी मेरी गवाह,
घर आई नागण पुजिये, क्यूं बम्बी पूजण जा,
मैं कर सोला सिंगार, महल में बैठी पाई,
ले फेरे छ: सात, नफा के बरात ढुकाकै !!3!
आ खेल घड़ी दो-चार, या चौपड़ सार बिछाई,
घाल हाथ म्य हाथ, बैठज्या नाड़ झुकाकै ।।
लखमीचन्द का शेर कैसा चेहरा पर किस्मत का बोदा,
कर्मों करकै मिला करै सै, सगा और सौदा,
ये मर्द घणे होशियार, जगत में दुखी लुगाई,
करैं हठ धर्मी की बात, मार दें सुका-सुकाकै !!4!
आ खेल घड़ी दो-चार, या चौपड़ सार बिछाई,
घाल हाथ म्य हाथ, बैठज्या नाड़ झुकाकै ।।
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