वास्तु शास्त्र में केंद्र बिंदु या 'ब्रह्मस्थान' का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह किसी भवन या भूखंड के केंद्र में स्थित होता है और इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। ब्रह्मस्थान के बारे में विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है:
ब्रह्मस्थान भवन या भूखंड के ठीक बीच में स्थित होता है। इसे घर का हृदय माना जाता है।
यह चारों दिशाओं के संगम बिंदु पर होता है, जहाँ ऊर्जा का संतुलन होता है।
वास्तु के अनुसार, ब्रह्मस्थान को ब्रह्मा, सृजन के देवता का क्षेत्र माना जाता है।
इसे सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत माना जाता है, जो घर के सभी हिस्सों में समान रूप से वितरित होती है।
इस क्षेत्र को खाली और खुला रखना चाहिए, जिससे ऊर्जा का स्वतंत्र प्रवाह हो सके।
यहाँ पर भारी वस्तुएं, दीवारें या खंभे नहीं होने चाहिए।
इस क्षेत्र में छोटे उद्यान या आंगन बनाए जा सकते हैं, जिससे सकारात्मक प्रभाव बढ़े।
ब्रह्मस्थान का सही रखरखाव स्वास्थ्य, समृद्धि और कल्याण में वृद्धि करता है।
यह सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह सुनिश्चित करता है, जो घर के वातावरण को संतुलित और सामंजस्यपूर्ण बनाता है।
ब्रह्मस्थान में रसोईघर, शौचालय या सीढ़ियाँ नहीं होनी चाहिए।
खुला आंगन या हरे-भरे पौधे ब्रह्मस्थान में सकारात्मकता को बढ़ाते हैं।
ऊर्जा संतुलन:
ब्रह्मस्थान का ऊर्जा संतुलन पूरे घर के वातावरण को प्रभावित करता है।
सही ढंग से व्यवस्थित ब्रह्मस्थान से मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
वास्तु शास्त्र में ब्रह्मस्थान का विशेष महत्व है, और इसे सही ढंग से अपनाकर हम अपने घर में सुख, शांति और समृद्धि ला सकते हैं।
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