सम्भोग से समाधि
ये कहते हैं कि जब यह आवेश चरमसीमा पर पहुंचे मन का भाव
बदल दो और इस ऊर्जा को मूलाधार से स्वाधिष्ठान पर खींच कर ले जाओ। स्वाधिष्ठान मूलाधार की अपेक्षा धन बिंदु है। वहां धन एवं ऋण धारा के मिलने से जो विस्फोट होता है, वह स्वाधिष्ठान बिंदु की शक्ति कई गुणा बढ़ा देता है। फिर उस शक्ति को अगले बिंदु पर ले जाओ। इस प्रकार मूलाधार पर बनने वाले आवेश को सहस्रार पर पहुंचा दो। ऐसा बार-बार अभ्यास करने से मूलाधार सहित सभी बिंदु शक्तिशाली हो जाते हैं और ऊर्जा धारा, मूलाधार से सहस्त्रार की ओर बहने लगती है। इससे, वह शिव बिंदु जो सिर के चांद के मध्य सहस्रार के नाभिक में होती है, सशक्त हो जाती है और समाधि लग जाती है। यह कुंडलिनी जागरण की एक वाममार्गी तकनीकी है और अत्यन्त सरल है; परन्तु चूंकि यह वैदिक आचार संहिता के अनुरूप नहीं है, इसलिये वैदिक पंडितों ने इसका बहुत विरोध किया और इसके बाद भी प्राचीन युग में इसकी लोकप्रियता इतनी बढ़ गयी है कि सम्भ्रान्त कुल के व्यक्ति एवं महिलायें भी इन्हें अपनाने लगीं। राज परिवारों, सरदारों, जमींदारों ने इस तकनीकी को अपना लिया। साधु-संत तो इसे ही उद्देश्य बनाने लगे। बाद में कुछ वैदिक पंडितों ने सेनापति को पक्ष में मिलाकर ऐसे गुरुओं को मरवा डाला, उनके आश्रम उजाड़ दिये।
यदि निष्पक्ष भाव से सोचा जाये तो किसी भी युग में सेक्स पर नियंत्रण नहीं हुआ। वैदिक संस्कृति का भी बड़ा हिस्सा इसमें किसी न किसी रूप में छूट दिये हुए थे। विश्व में कहीं भी आचरण के नियमों में सेक्स की वर्जना का महत्व नहीं है। जब रहा भी तो केवल पाखंड किया गया। अन्दर ही अन्दर कामाग्नि की ज्वाला अमर्यादित संबंधों को बनाती रही। महाभारत काल में पराशर ने मल्लाहबाला के साथ अमर्यादित सम्बन्ध बनाया, वही बाद में रानी बनी और अपने बेटों की विधवाओं के साथ अपने और पराशर के अवैध पुत्र के द्वारा नियोग प्रथा से धृत्तराष्ट्र और पांडु को उत्पन्न करवाया। कुंती का एक भी पुत्र अपने पति से नहीं था। उसने अपनी सौत को भी अपनी राह पर खींचा और उसके भी दो पुत्र अपने पति से नहीं थे। कौरव भी अपने पिता की संतान नहीं थे। द्रौपदी के पांच पति थे। इससे पूर्व भी अहिल्या से चन्द्रमा ने और तुलसी से विष्णु ने रतिक्रीड़ा की, जो उचित नहीं था। श्रीकृष्ण के रास में भी वैदिक मर्यादा नहीं थी और अत्यन्त प्राचीन काल में तो अतिथि को पत्नी देकर आतिथ्यधर्म किया जाता रहा है।
अतः केवल इस कारण वाममार्ग की इस विधि की आलोचना करना या इससे घृणा करना धर्म-सम्मत नहीं है। आज की ही देखिये। पति-पत्नी के धर्म और आचरण संबंधी रुढ़ भावनायें पुरानी हैं कि वह सती-सावित्री हो और पुरष राम हो; परन्तु सत्य क्या है? 25 वर्ष की उम्र तक कौन युवती कुंवारी रहती है और तीस वर्ष तक कौन युवक कुंवारा रहता है। आजकल सहशिक्षा में तो लड़कियां 19 एवं लड़के 16 में यौन-संबंध बना रहे हैं। अवैध गर्भपात करवा रहे हैं; परन्तु सरकार राग अलाप रही है कि 18 से कम उम्र में लड़कियों की शादी करना अपराध है और समाज चाहता है कि 25 वर्ष की युवती भी अछूती ही बहू या पत्नी बनकर आये। उस पर निर्वाध यौन संबंध और उच्छृंखल जीवन के पक्ष में भी तर्क दिये जा रहे हैं।
अब यह सब पाखंड नहीं तो क्या है?.... वाममार्ग में तो रति को पूजा समझ कर रतिक्रीड़ा की जाती है और उससे अत्यन्त चमत्कारी शक्तियां प्राप्त करके चिर यौवन और लम्बा जीवन प्राप्त किया जाता है।.... लेकिन आज भी साधक-साधिका इन साधनाओं को छुपाकर कर रहे हैं। हाल यह है कि बड़े घरानों की महिलायें और युवतियां इनमें यत्र-तत्र शामिल हैं; परन्तु उनमें साहस नहीं कि वे इन्हें कबूल सकें। मुम्बई की तीन प्रसिद्ध हीरोइनें एक तंत्रसाधक के पास जाती हैं। वहां इस क्रिया में संलग्न होती हैं। मैंने वहां उनके निर्वस्त्र चित्र देखें हैं। वे सदा अपने रूप और यौवन को एक सा बनाये रखने के उद्देश्य से जाती हैं; पर छुपकर वेश बदलकर । स्पष्ट है कि समाज इसको आज भी उचित नहीं समझता और पढ़े-लिखे लोग एवं महिलाओं में भी साहस नहीं कि सत्य को अपने स्तर पर रख सकें।
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