जाट मेहर सिंह #kavi sammelan 💯 हरियाणवी कविता kaviyon ki baat haryanvi kavita tau ki kavita sonotak
बिस्तर बांध कै चाल पडया जब याद हाजरी आई।
मेरे फिकर म्हं मेरी बहू नै रोटी भी ना खाई।।
दो दिन रहैगे छुट्टी के मेरा घी पीपी म्हं घाल्या
छोटे भाई नैं ठाया बिस्तर मेरै आगे आगै चाल्या
कुए पै मेरी बहू फेटगी सांस सबर का घाल्या
दरवाजे म्हं खड़े पिता जी मैं उनकी कान्हीं चाल्या
हालत देख कै वे न्यूं बोले हमनै चाहती नहीं कमाई।।1।।
मेरे फिकर म्हं मेरी बहू नै रोटी भी ना खाई।।
बिस्तर बांध कै चाल पडया जब याद हाजरी आई।
टेशन ऊपर पहोंच गया सुसराड़ पड़ै थी जड़ म्हं
क्लाक रूम म्हं धऱ्या बिस्तरा पहोंच्या बीच बगड़ म्हं
छोटी साली न्यूं बोलै जणू कोयल बोलै झड़ म्हं
आ जीजा तूं बैठ पिलंग पै मैं बेठूं तेरी जड़ म्हं
घणे दिनां मैं आया जीजा के भूल गया था राही।।2।।
मेरे फिकर म्हं मेरी बहू नै रोटी भी ना खाई।।
बिस्तर बांध कै चाल पडया जब याद हाजरी आई।
जब रोटियां का टेम हुया आई बलावण साली
आलू टमाटर घी बूरा की ठाडी भरदी थाली
धोरै बैठ जिमावण लागी तिरछे घूंघट आली
मुंह
बटुआ सा गोल गोल था होठां पर थी लाली
उस गोरी के संग मैं छोर्यो साबत रात बिताई ||3||
मेरे फिकर म्हं मेरी बहू नै रोटी भी ना खाई।।
बिस्तर बांध कै चाल पडया जब याद हाजरी आई।
जब चालण का टेम हुया वा बोली साली आण
तू तो जीजा चाल पड़े म्हारी रोती छोड़ी बहाण
जाणा पड़ै जरूरी हमनै म्हारा करड़ा सै लदाण
जै नहीं आता यकीन तेरै तैं चाल गेल पाटज्या जाण
मेहर सिंह पहोंच गया पलटन म्हं जाते ए ड्यूटी लाई ।।4।।
मेरे फिकर म्हं मेरी बहू नै रोटी भी ना खाई।।
बिस्तर बांध कै चाल पडया जब याद हाजरी आई।
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