जय गुरुदेव
भगवान के तीन स्वरूप बताए गए हैं। ये हैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश। ब्रह्माजी ने इस सृष्टि की रचना की है, विष्णुजी पालन कर रहे हैं और महेश यानी शिवजी सृष्टि का संहार करते हैं। विष्णु का शाब्दिक अर्थ है जो सभी में व्याप्त हो, वही विष्णु है। उज्जैन के भागवत कथाकार पंडित मनीष शर्मा के अनुसार भगवान विष्णु का चतुर्भुज स्वरूप है। उनके दो हाथों में गदा और चक्र के रूप में दंड देने वाले हथियार हैं
रानी मान्यताओं के अनुसार भृगु ऋषि ने विष्णुजी को तीनों देवों में श्रेष्ठ घोषित किया है। प्रचलित कथा के अनुसार महर्षि भृगुु जानना चाहते थे कि तीनों देवों में श्रेष्ठ कौन है? इसके लिए वे सबसे पहले शिवजी के पास गए। उस समय शिवजी माता सती के साथ थे। सभी रुद्रगणों ने ऋषि को शिवजी से मिलने से रोक दिया। इसके बाद भृगु ब्रह्माजी के पास पहुंचे। उस समय ब्रह्माजी सभी देवताओं के साथ दरबार में थे। भृगु वहां पहुंचे तो ब्रह्माजी ने उनका स्वागत नहीं किया तो वे वहां से क्रोधित होकर विष्णु लोक जाने के लिए चल दिए। जब भृगु विष्णु लोक पहुंचे, तब विष्णु सो रहे थे। भृगु ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोध से विष्णु की छाती पर पैर मार दिया। इस प्रकार जगाए जाने पर भी विष्णुजी ने धैर्य रखा और क्षमा मांगते हुए कहा कि महर्षि आपको चोट तो नहीं लगी? मैं बड़ा कठोर हृदय हूं। उन्होंने महर्षि के पैर पकड़ लिए और सहलाने लगे। विष्णु की इस महानता से प्रसन्न होकर महर्षि भृगु ने उन्हें देवों में श्रेष्ठ घोषित किया।
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