पहाड़ों के लिए monoculture यानी एक ही तरह की फसल उगाना अभिशाप होगा, देसी बीज का इस्तेमाल, पारम्परिक मोटे अनाज, झाड़ियाँ, 12 नाजा प्रणाली से फसल उगाना, प्रकृति संसाधनों और गुणों को समाए पहाड़ की खेती से पोषण और शारीरिक लाभ पाने की नितांत सम्भावनाएँ हैं लेकिन ठेका खेती क़ानून आने से इन सब पर ख़तरा मंडरा रहा है, ज़मीन से ही किसानों का अस्तित्व है, खेती बचेगी तो देश बचेगा।
सुनिए उत्तराखंड के स्थानीय सामाजिक और कृषि ऐक्टिविस्ट, AGAAS Federation के Founder Chairperson JPMaithani के साथ ‘मिशन उत्तराखंड’ पर उनके विचार और सुझाव।
Негізгі бет कृषि क़ानून: पहाड़ों में खेती के लिए ख़तरा?
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