मै हूर परी dada lakhmichand भगत पूरणमल kaviyon ki baat कवि सम्मेलन haryanvi kavitaलख्मीचंद haryanvi
मैं हूर परी, के उमर मेरी, वा मात तेरी, तू जिसके पेट पड़या ।।
गमी का नाम धर दिया शादी, डूब गये मात-पिता जिननै ब्याहदी,
गल लादी लागर कै, रतनागर कै, मुझ सागर कै,
पति पल्लै लेट पड़या ।।1।
मैं हूर परी, के उमर मेरी, वा मात तेरी, तू जिसके पेट पड़या ।।
तनै दई मार रेख मैं मेख, लादी काचे घा मैं सेक,
एक रश्म बिना, और कसम बिना, आड़ै खसम बिना,
किसा मलियामेट पड़या ।।2।
मैं हूर परी, के उमर मेरी, वा मात तेरी, तू जिसके पेट पड़या ।।
सच्चे दिल तै लाइऐ प्रीति, तनै हंस-खेलकै काया जीती,
उम्र बीती दुख-सहते, यहां रहते, मां कहते,
तेरा क्यूकर ढेठ पड़या ।।3।।
मैं हूर परी, के उमर मेरी, वा मात तेरी, तू जिसके पेट पड़या ।।
लखमीचन्द छन्द नै धररया, मेरा जी खेलण नै करग्या,
रस भररया बीच फीणी कै, मुझ हीणी कै, इस सिंहणी कै,
तू गादड़, फेट पड़या ।।4।
मैं हूर परी, के उमर मेरी, वा मात तेरी, तू जिसके पेट पड़या ।।
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