जय गुरुदेव
हम जिसका बार-बार चिंतन करते हैं, उसमें हमारी आसक्ति हो जाती है। उसके लिए हमारा मन पिघल जाता है। जैसे पिघले लोहे को जिस साँचे में डालते हैं, वह लोहा ठीक उसी साँचे में ढल जाता है, ठीक उसी प्रकार हमारे मन का लगाव जिस personality से होता है उसी का गुण हमारे मन में आ जाता है। आसक्ति के पश्चात् उसकी कामना पुनः पूर्ति पर लोभ और कामना की अपूर्ति पर क्रोध उत्पन्न होता है। इस प्रकार हमलोग दुखी रहते हैं।
यदि गौर करें तो हमारे जीवन का अधिकांश दुख मानसिक ही होता है और हम इसी दुख से परेशान रहा करते हैं। इसका जड़ हमारा चंचल मन है।
ये तो आप सभी जानते हैं कि, चंचल मन को टिकाने का एकमात्र उपाय ध्यान है। इस समय संसार में भिन्न-भिन्न प्रकार के लोग तरह-तरह से मन को एकाग्र करने के लिए ध्यान की विधियाँ बताते हैं। कोई कहता है कि काग़ज के छोटे टुकड़े को हथेली पर रखकर उसे पाँच मिनट देखो तो मन एकाग्र होगा। कोई कहता है मोमबत्ती को जलाकर उसे देखते रहो, कोई आँखें बंद करके ज्योति , स्थूल शरीर आदि को देखता है। इत्यादि अनेकों तरह से लोग ध्यान लगाने का प्रयत्न करते हैं। इस प्रकार के ध्यान से क्षणिक आराम तो मिल जाता है, लेकिन इस चंचल मन का क्या? यह तो पुनः अपने पुराने अभ्यास के कारण सांसारिक क्षेत्रों में मग्न हो जाता है और हम फिर अशांत हो जाते हैं।
इसका उपाय ’’जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज” ने ’रूपध्यान” के विज्ञान से जनसाधारण को परिचित कराया।
रुपध्यान ध्यान की ऐसी विधि है जिसमें हम अपने चंचल मन को श्रीराधा कृष्ण के सुंदर रुप में लगाते हैं एवं इसी का अभ्यास करते हैं। सर्वांतर्यामी ईश्वर की कृपा से उसका ज्ञान व आनंद प्राप्त होने लगता है, जिससे मन पुनः गलत जगहों में नहीं लगता एवं अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहता है।
चंचल मन
चंचल मन ने बहुत नचाया
मन में विचार क्यों आते हैं
मन में गलत विचार आने से कैसे रोके
मन में अच्छे विचार कैसे लाये
मन में नेगेटिव विचार आते हैं
मन में गलत विचार क्यों आते हैं
मन में गलत विचार आए तो क्या करना चाहिए
मन में गलत विचार आना
मन में गलत विचार आए तो क्या करें
मन में अच्छे विचार
मन बहुत अशांत है
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