. ★ पारमार्थिक स्वार्थ ★
जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज
द्वारा स्वरचित पद
'जोइ स्वारथ पहिचान, धन्य सोइ'
की व्याख्या
लेक्चर भाग-4
वेद का कानून नित्य है, सनातन है
और वेद ऐसा भण्डार है,
जिसमें spiritual, material सारे तत्त्व भरे पड़े हैं
लेकिन रसिक लोग वेद की निन्दा करते हैं।
निन्दा।
निन्दा से अभिप्राय दुर्भावना नहीं है।
अपने काम के दृष्टिकोण से वे लोग कहते हैं
कि वेद तो भगवान हैं, बिल्कुल ठीक है
वेदो नारायणः साक्षात्।
स्वयं भगवान जैसे होते हैं, ऐसे ही वेद हैं।
भगवान के बराबर उनकी सीट है।
लेकिन
श्रुतमप्यौपनिषदं दूरे हरिकथामृतात्
यन्नसन्तिद्रवचित्त कम्पाश्रुपुलकादयः।
वेदव्यास ने लिखा है
कि उपनिषद का बड़ा गंभीर ज्ञान
जो आप लोग सुन रहे हैं,
ये उपनिषद है, वेद है।
ये बड़ा गंभीर ज्ञान हमसे दूर ही रहे
दूर से नमस्कार है।
क्यों?
इसलिये कि वेद में सगुण साकार की विस्तृत लीला नहीं है
हमारे श्यामसुन्दर की लीला रस जहाँ नहीं है,
ऐसा वो भगवान का वेद हो,
या भगवान हो या कोई हो
हम महाविष्णु तक का तिरस्कार करते हैं
वेद का कैसे करेंगे सम्मान?
Негізгі бет Музыка Parmarthik Swarth 4/8 पारमार्थिक स्वार्थ-भाग 4/8
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