. ★ पारमार्थिक स्वार्थ ★
जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज
द्वारा स्वरचित पद
'जोइ स्वारथ पहिचान, धन्य सोइ'
की व्याख्या
लेक्चर भाग-2
प्रत्येक जीव केवल आनन्द चाहता है।
क्यों? क्यों चाहता है?
नास्तिक हो, आस्तिक हो,
भगवान का विरोधी हो, अनुयायी हो,
कोई पर्सनालिटी है, तो वो आनन्द ही चाहती है।
क्यों?
इसलिये कि ये जीव आनन्द का अंश है।
उसका दास है।
आनन्दो ब्रह्मेति व्यजानात्।
सत्यं विज्ञानं आनन्दं ब्रह्म।
वो जो ब्रह्म है, जिसको हमने
भगवान ब्रह्म आदि शब्दों से बताया है,
उसका एक नाम है- आनन्द।
वो सबसे बढ़िया नाम है।
अपने काम का।
इसलिये उसको सच्चिदानन्द कहते हैं।
आनन्द शब्द, देखिये, बाद में आया।
आनन्द चित् सत् नहीं कहते।
चित् सत् आनन्द नहीं कहते।
सत् चित् आनन्द कहते हैं।
इसका विज्ञान है।
इसमें कौन-सा विशेष विज्ञान छिपा है
जानिये जगद्गुरूत्तम महाराज श्री के श्रीमुख से
Негізгі бет Музыка Parmarthik Swarth 2/8 पारमार्थिक स्वार्थ-भाग 2/8
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