छठी शताब्दी और आज ...करीब पंद्रह सौ साल का वक़्त गुजर चुका है. इतने लंबे अरसे में तो यादों पर भी वक़्त की गर्द चढ़ जाती है. पर यहां जिस राज़ की बात की जा रही है, वो पंद्रह सौ साल बाद भी जिंदा है.
एक किला, जो पहाड़ों पर सीना ताने खड़ा है, इस किले में रहस्य है. सन्नाटे को चीरती घुंघरुओं की चीख़ है, तो कहीं तिलिस्मी चमत्कार. कई ख़ौफ़नाक हवेलियों और किले के क़िस्से अब तक सुने गए हैं. ऐसी कोई भी हवेली या किला नहीं था, जहां कोई रहता हो, इसलिए दास्तान कितनी सच है, कितनी झूठ, ये शक़ हमेशा बना रहता था. मगर इस किले में 'वो' रहती है और साथ में रहती है उसकी घुंघरुओं का आवाज़. जी हां...'वो', जिसे मरे 1500 साल बीत चुके हैं.
कभी किसी महल जैसा रहा शानदार किला आज खंडहर में तब्दील हो गया है. मगर यहां की ज़िंदगी यहां के क़िरदारों के साथ आज भी ज़िंदा नज़र आती है. यहां के वीराने आज भी किसी के जिंदा होने का अहसास कराते हैं और जब दिन थककर सो जाता है, तो यहां रात की तनहाई अक्सर घुंघरुओं की छनकती आवाजों से टूट जाती है.
कालिंजर के इस दुर्ग में काली गुफाओं के कई रहस्यमई तिलिस्म हैं. रात होते ही इन गुफाओं में एक अजीब हलचल होती है. दिन के वक्त ये किला जितना खामोश नज़र आता है, रात के वक्त उतना ही खौफनाक. किले की 800 फुट की ऊंचाई पर पानी की धार नीचे से ऊपर की ओर बहती है.
बांदा में ज़मीन से 800 फुट ऊंची पहाड़ियों पर बना है कालिंजर का किला. कालिंजर दुर्ग को किसी ने चमत्कार कहा तो किसी ने अनोखा तिल्सिम करार दिया. बस यही वजह थी कि क़दम भी बेसाख्ता पहाड़ी की ओर बढ़ चले.
Негізгі бет तिलिस्मी किला जिसमें घुंघरू की आवाज आज भी गूंजती है..!! Mystery of
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